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Friday, September 3, 2021

ग़ज़ल (भारत पर अभिमान रखूँ)

22  22  22  2

भारत पर अभिमान रखूँ,
अपना सीना तान रखूँ।

देश ही मेरा सब कुछ है,
मन में बस ये शान रखूँ।

भाषा और धर्म के अपने,
गौरव का मैं मान रखूँ।

दुश्मन की हर हलचल पर,
खुल्ली आँखें, कान रखूँ।

हाँ, इस युग में ढ़ल न सका,
पर-पीड़ा का भान रखूँ।

दीन दुखी की सेवा का,
तन-मन-धन से ध्यान रखूँ।

देश 'नमन' शत बार तुझे,
तुझ से ही पहचान रखूँ।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
31-12-2018

Wednesday, August 4, 2021

ग़ज़ल (नर से नर शर्मिंदा क्यूँ है)

बह्र:- 22  22  22  22

नर से नर शर्मिंदा क्यूँ है,
पर जन की बस निंदा क्यूँ है।

थोड़े रुपयों ख़ातिर बिकता,
सरकारी कारिंदा क्यूँ है।

आख़िर आज अभाव' में इतना,
देश का हर बाशिंदा क्यूँ है।

जिस को देखो वो ही लगता,
सत्ता का साज़िन्दा क्यूँ है।

नूर ख़ुदा का पा कर भी नर,
वहशी एक दरिंदा क्यूँ है।

देख देख जग की ज्वाला को,
अंतर्मन तू जिंदा क्यूँ है।

'नमन' मुसीबत का ही मानव,
इक लाचार पुलिंदा क्यूँ है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-10-19

Sunday, July 4, 2021

ग़ज़ल (देख तुम्हारी भोली सूरत)

बहरे मीर:- 22  22  22  22

देख तुम्हारी भोली सूरत,
भूल गये हम सबकी सूरत।

आँखों में तुम ही तुम छायी,
और नहीं अब भाती सूरत।

दिल पर करम करो, मिलने की,
तुम्हीं निकालो कोई सूरत।

देख आइना मत इतराओ,
सबको प्यारी अपनी सूरत।

अगर देखना है विकास तो,
जाकर देखें नगरी सूरत।

जब चुनाव नेड़े आते हैं,
नेताओं की दिखती सूरत।

'नमन' कहे मतलब की खातिर,
आज देश की बिगड़ी सूरत।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
04-12-2017

Wednesday, May 5, 2021

ग़ज़ल (दीवाली पर जगमग जगमग)

बह्र:- 22 22 22 22 22 22 222

दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं,
आतिशबाज़ी धूम धड़ाके हर नुक्कड़ पर होते हैं।

पकवानों की खुशबू छायी, आरतियों के स्वर गूँजे,
त्योहारों के ये ही क्षण खुशियों के अवसर होते हैं।

अनदेखी परिणामों की कर जंगल नष्ट करें मानव,
इससे नदियों का जल सूखे बेघर वनचर होते हैं।

क्या कहिये ऐसों को जो रहतें तो शीशों के पीछे,
औरों की ख़ातिर उनके हाथों में पत्थर होते हैं।

कायर तो छुप वार करें या दूम दबा कर वे भागें,
रण में डट रिपु जो ललकारें वे ताकतवर होते हैं।

दुबके रहते घर के अंदर भारी सांसों को ले हम,
आपे से सरकार हमारे जब भी बाहर होते हैं।

कमज़ोरों पर ज़ोर दिखायें गेह उजाड़ें दीनों के,
बर्बर जो होते हैं वे अंदर से जर्जर होते हैं।

पर हित में विष पी कर के देवों के देव बनें शंकर,
त्यज कर स्वार्थ करें जो सेवा पूजित वे नर होते हैं।

दीन दुखी के दर्द 'नमन' जो कहते अपनी ग़ज़लों में,
वैसे ही कुछ खास सुख़नवर सच्चे शायर होते हैं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-10-20

Monday, April 5, 2021

ग़ज़ल (झूठे रोज बहाना कर)

बह्र:- 22  22  22  2

झूठे रोज बहाना कर,
क्यों तरसाओ ना ना कर।

फ़िक्र जमाने की छोड़ो,
दिल का कहना माना कर।

मेटो मन से भ्रम सारे,
खुद को तो पहचाना कर।

कब तक जग भरमाओगे,
झूठे जोड़ घटाना कर।

चैन तभी जब सोओगे,
कुछ नेकी सिरहाना कर।

जग में रहना है फिर तो,
इस जग से याराना कर।

दुखियों का दुख दूर 'नमन',
कोशिश कर रोजाना कर।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन',
तिनसुकिया
3-1-19

Friday, March 5, 2021

ग़ज़ल (ग़म पी पी कर दिल जब ऊबा)

बह्र:- 2222 2222 2222 222

ग़म पी पी कर दिल जब ऊबा, तब मयखाने याद आये,
तेरी आँखों की मदिरा के, सब पैमाने याद आये।

उम्मीदों की मिली हवाएँ जब भी दिल के शोलों को 
तेरे साथ गुजारे वे मदहोश ज़माने याद आये।

मदहोशी में कुछ गाने को जब भी प्यासा दिल मचला, 
तेरा हाथ पकड़ जोे गाये, सभी तराने याद आये।

ख्वाबों में भी मैंने चाहा, जब भी तुझ को छूने को,
इठला कर वो ना ना करते, हसीं बहाने याद आये।

संगी साथी संग कभी गर दिल हल्का करना चाहा,
तू मुझ में मैं तुझ में खोया दो दीवाने याद आये।

पल जो तेरे साथ गुजारे, तरस गया हूँ अब उनको,
तेरी मीठी नोक झोंक के, सब अफ़साने याद आये।

नए कभी उपहार मिलें तो, टीस 'नमन'-मन में उठती,
होठों से जो तुझ से मिले थे, वे नज़राने याद आये।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-12-16

Thursday, February 4, 2021

ग़ज़ल (कब से प्यासे नैना दो)

बहरे मीर:- 22  22  22  2

कब से प्यासे नैना दो,
अब तो सूरत दिखला दो।

आज सियासत बस इतनी,
आग लगा कर भड़का दो।

बदली में ओ घूँघट में,
छत पर चमके चन्दा दो।

आगे आकर नवयुवकों,
देश की किस्मत चमका दो।

दीन दुखी पर ममता का,
अपना आँचल फैला दो।

मंसूबों को दुश्मन के,
ज्वाला बन कर दहका दो।

रमते जोगी अपना क्या,
लेना एक न देना दो।

रच कर काव्य 'नमन' ऐसा,
तुम क्या हो ये बतला दो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-11-2019

Monday, January 4, 2021

ग़ज़ल (जग में जो भी आने वाला)

22  22  22  22

जग में जो भी आने वाला,
वह सब इक दिन जाने वाला।

कौन निभाये साथ दुखों में,
हर कोई समझाने वाला।

साथ चला रहबर बन जो भी,
निकला ख़ार बिछाने वाला।

लाखों घी डालें जलती में,
बिरला आग बुझाने वाला।

आज कहाँ मिलता है कोई,
सच्ची राह दिखाने वाला।

ऊपर से ले नीचे तक हर,
सत्ता में है खाने वाला।

खुद पे रख विश्वास 'नमन' तू,
कोइ न हाथ बँटाने वाला।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
4-2-19

Friday, December 4, 2020

ग़ज़ल (साथ सजन तो चाँद सुहाना)

बह्र:- 22  22  22  22  22  2

साथ सजन तो चाँद सुहाना लगता है,
दूर पिया तो फिर वो जलता लगता है।

मन में जब ख़ुशहाली रहती है छायी,
हर मौसम ही तब मस्ताना लगता है।

बच्चों की किलकारी घर में जब गूँजे,
गुलशन सा घर का हर कोना लगता है।

प्रीतम प्यारा जब से ही परदेश गया,
बेगाना मुझको हर अपना लगता है।

झूठे तेरे फिर से ही वे वादे सुन,
तेरा चहरा पहचाना सा लगता है।

प्रेम दया के भाव सृष्टि पर यदि रख लो,
यह जग भगवत मय तब सारा लगता है।

पात्र 'नमन' का वो बनता है नर जग में,
हर नर जिसको अपने जैसा लगता है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
24-05-19

Thursday, November 5, 2020

ग़ज़ल (कैसी ये मज़बूरी है)

बह्र:- 2222 2222 2222 222

गदहे को भी बाप बनाऊँ कैसी ये मज़बूरी है,
कुत्ते सा बन पूँछ हिलाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

एक गाम जो रखें न सीधा चलना मुझे सिखायें वे,
उनकी सुन सुन कदम बढ़ाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

झूठ कपट की नई बस्तियाँ चमक दमक से भरी हुईं,
अपना घर में वहाँ बसाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

सबसे पहले ऑफिस आऊँ और अंत में घर जाऊँ,
मगर बॉस को रिझा न पाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

ऊँचे घर में तोरण मारा पहले सोच नहीं पाया,
अब नित उनके नाज़ उठाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

सास ससुर से माथा फोड़ूं  साली सलहज एक नहीं,
मैं ऐसे ससुराल में जाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

डायटिंग घर में कर कर के पीठ पेट मिल एक हुये,
पर दावत में ठूँस के खाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

कारोबार किया चौपट है चंदे के इस धंधे ने,
हर नेता से आँख चुराऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

पहुँच बना कर लगी नौकरी तनख्वाह में अब सेंध लगी,
ऊपर सबका भाग भिजाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

झूठी वाह का दौर सुखन में 'नमन' आज ऐसा आया,
नौसिखियों को मीर बताऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-04-18

Friday, August 7, 2020

ग़ज़ल (कोरोना का क्यों रोना है)

बह्र:- 22  22  22  22

कोरोना का क्यों रोना है,
हाथों को रहते धोना है।

दो गज की दूरी रख कर के,
सुख की नींद हमें सोना है।

बीमारी है या दुनिया पर,
ये चीनी जादू टोना है।

यह संकट भी टल जायेगा,
धैर्य हमें न जरा खोना है।

तन मन का संयम बस रखना,
चाहे फिर हो जो होना है।

कोरोना की बंजर भू पर,
हिम्मत की फसलें बोना है।

चाल नमन गहरी ये जिससे,
पीड़ित जग का हर कोना है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-07-20

Saturday, July 4, 2020

ग़ज़ल (खुशियों ने जब साथ निभाना छोड़ दिया)

बह्र:- 22  22  22  22  22  2

खुशियों ने जब साथ निभाना छोड़ दिया,
हमने भी अपने को तन्हा छोड़ दिया।

झेल गरीबी को हँस जीना सीखे तो,
गर्दिश ने भी साथ हमारा छोड़ दिया।

हमें पराई लगती ये दुनिया जैसे,
ग़ुरबत में अपनों ने पल्ला छोड़ दिया।

थोड़ी आज मुसीबत सर पे आयी तो,
अहबाबों ने घर का रस्ता छोड़ दिया।

जब से अपने में झाँका है, आईना
हमने लोगों को दिखलाना छोड़ दिया।

नेताओं ने अपना गेह बसाने में,
जनता का आँगन ही सूना छोड़ दिया।

धनवानों ने अपनी ख़ातिर देख 'नमन',
मुफ़लिस को तो आज बिलखता छोड़ दिया।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
1-10-19

Tuesday, April 7, 2020

ग़ज़ल (छाया देते पीपल हो क्या)

बह्र:- 22  22  22  22

छाया देते पीपल हो क्या,
या दहशत के जंगल हो क्या।

जीवन का कोलाहल हो क्या,
थमे न जो वो दृग-जल हो क्या।

बजती जो पैसों की खातिर,
वैसी बेबस पायल हो क्या।

दुराग्रहों में अंधे हो कर,
सच्चाई से ओझल हो क्या।

दिखते तो हो, पर भीतर से,
मखमल जैसे कोमल हो क्या।

वक़्त चुनावों का जब आये,
हाल जो पूछे वो दल हो क्या।

गर हो माँ के आँचल से तो,
उसके जैसे शीतल हो क्या।

भूल गये बजरंग जिसे थे,
देश के बल तुम! वो बल हो क्या।

जाम-ओ-मीना हुस्न के जलवे,
'नमन' इन्हीं में पागल हो क्या।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-10-19

Wednesday, March 4, 2020

ग़ज़ल ( जीभ दिखा कर)

बह्र:- 2222 2222 2222 222

जीभ दिखा कर यारों को ललचाना वे भी क्या दिन थे,
उनसे फिर मन की बातें मनवाना वे भी क्या दिन थे।

साथ खेलना बात बात में झगड़ा भी होता रहता,
पल भर कुट्टी फिर यारी हो जाना वे भी क्या दिन थे।

गिल्ली डंडे कंचों में ही पूरा दिवस खपा देना,
घर आकर फिर सब से आँख चुराना वे भी क्या दिन थे।

डींग हाँकने और खेलने में जो माहिर वो मुखिया,
ऊँच नीच के भेद न आड़े आना वे भी क्या दिन थे।

नयी किताबें या फिर ड्रेस खिलौने मिलते अगर कभी,
दिखला दिखला यारों को इतराना वे भी क्या दिन थे।

नहीं कमाने की तब चिंता कुछ था नहीं गमाने को,
खेल खेल में पढ़ना, सोना, खाना वे भी क्या दिन थे।

'नमन' मुसीबत की घड़ियों में याद करे नटखट बचपन,
हर आफ़त से बिना फ़िक़्र टकराना वे भी क्या दिन थे।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-09-18

Monday, January 6, 2020

नेताओं पर मुसलसल ग़ज़ल

2*7 (नेताओं पर मुसलसल ग़ज़ल)

माल पराया खाएँ हम,
नेता तब कहलाएँ हम।

जनता की दुखती रग से,
अपनी जीत पकाएँ हम।

देश भले लुटता जाए,
अपनी फ़िक्र जताएँ हम।

अपनी तो तिकड़म सारी,
कैसे कुर्सी पाएँ हम।

बात किसी की हम न सुनें,
बस खुद की ही गाएँ हम।

झूठे सपनों को दिखला,
जनता खूब लुभाएँ हम।

'नमन' किसे परवाह यहाँ,
भाएँ या ना भाएँ हम।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-5-19

Tuesday, November 5, 2019

ग़ज़ल (दुनिया है अलबेली)

बहरे मीर:- 2*6

दुनिया है अलबेली,
ये अनबूझ पहेली।

कड़वा जगत-करेला,
रस लो तो गुड़-भेली।

गले लगा या ठुकरा,
पर मत कर अठखेली।

किस्मत भोज बनाये,
या फिर गंगू तेली।

नेता आज छछूंदर,
सर पे मले चमेली।

आराजक बन छाये,
सत्ता जिनकी चेली।

'नमन' उठा सर जीओ,
दुनिया बना सहेली।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
31-08-19

ग़ज़ल (छेड़ाछाड़ी कर जब कोई)

बह्र:- 2222 2222 2222 222

छेड़ाछाड़ी कर जब कोई सोया शेर जगाए तो,
वह कैसे खामोश रहे जब दुश्मन आँख दिखाए तो।

चोट सदा उल्फ़त में खायी अब तो ये अंदेशा है,
उसने दिल में कभी न भरने वाले जख्म लगाए तो।

जनता ये आखिर कब तक चुप बैठेगी मज़बूरी में,
रोज हुक़ूमत झूठे वादों से इसको बहलाए तो।

अच्छे और बुरे दिन के बारे में सोचें, वक़्त कहाँ,
दिन भर की मिहनत भी जब दो रोटी तक न जुटाए तो।

उसके हुस्न की आग में जलते दिल को चैन की साँस मिले,
होश को खो के जोश में जब भी वह आगोश में आए तो।

हाय मुहब्बत की मजबूरी जोर नहीं इसके आगे, 
रूठ रूठ कोई जब हमसे बातें सब मनवाए तो।

दुनिया के नक्शे पर लाये जिसको जिस्म तोड़ अपना,
टीस 'नमन' दिल में उठती जब खंजर वही चुभाए तो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-10-17