Showing posts with label भृंग छंद. Show all posts
Showing posts with label भृंग छंद. Show all posts

Saturday, June 15, 2019

भृंग छंद "विरह विकल कामिनी"

सँभल सँभल चरण धरत, चलत जिमि मराल।
बरनउँ किस विध मधुरिम, रसमय मृदु चाल।।
दमकत यह तन-द्युति लख, थिर दृग रह जात।
तड़क तड़ित सम चमकत, बिच मधु बरसात।।

शशि-मुख छवि अति अनुपम, निरख बढ़त प्यास।
यह लख सुरगण-मन मँह, जगत मिलन आस।।
विरह विकल अति अब यह, कनक वरण नार।
दिन निशि कटत न समत न, तरुण-वयस भार।।

अँखियन थकि निरखत मग, इत उत हर ओर।
हलचल विकट हृदय मँह, उठत अब हिलोर।
पुनि पुनि यह कथन कहत, सुध बिसरत मोर।
लगत न जिय पिय बिन अब, बढ़त अगन जोर।।

मन हर कर छिपत रहत, कित वह मन-चोर।
दरसन बिन तड़पत दृग, कछु न चलत जोर।।
विरह डसन हृदय चुभत, मिलत न कछु मन्त्र।
जलत सकल तन रह रह, कछुक करहु तन्त्र।।
===================
लक्षण छंद:-

"ननुननुननु गल" पर यति, दश द्वय अरु अष्ट।
रचत मधुर यह रसमय, सब कवि जन 'भृंग'।।

"ननुननुननु गल" = नगण की 6 आवृत्ति फिर गुरु लघु।

111 111  111  111 // 111  111  21
20 वर्ण,यति 12,8 वर्ण,4 चरण 2-2 तुकांत
******************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-10-17