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Wednesday, April 26, 2023

ग़ज़ल (मानवी जीवन महासंग्राम है)

बह्र:- 2122  2122  212

मानवी जीवन महासंग्राम है,
प्रेम से रहना यहाँ विश्राम है।

पेट की ख़ातिर है इतनी भागदौड़,
ज़िंदगी में अब कहाँ आराम है।

जोर मँहगाई का ही चारों तरफ,
हर जगह नव छू रही आयाम है।

स्वार्थ नेताओं में बढ़ता जा रहा,
देश जिसका भोगता परिणाम है।

हाल क्या बदइंतजामी का कहें,
रोज हड़तालें औ' चक्का जाम है।

क़त्ल, हिंसा और लुटती अस्मिता,
हर कहीं अब तो मचा कुहराम है।

मन की दो बातें 'नमन' किससे करें,
पूछिये जिससे भी उस को काम है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-12-17

Saturday, November 5, 2022

ग़ज़ल (दोस्तो! अब दोस्तों की बात हो)

बह्र:- 2122  2122  212

दोस्तो! अब दोस्तों की बात हो,
साथ में की मस्तियों की बात हो।

बाँट लें फिर से वो खुशियाँ आज हम,
दोस्तों की सुहबतों की बात हो।

बंदरों से नाचते जिन डाल पर,
आज उन अमराइयों की बात हो।

बाग में झूलों की पींगें फिर से लें,
रंग, खुशबू, तितलियों की बात हो।

पाठशाला, घर हो या बाहर हो फिर,
नागवार_उन बंदिशों की बात हो।

भूल जाएं ग़मज़दा नाकामियाँ,
कामयाबी के दिनों की बात हो।

अब 'नमन' यादें ही बाकी रह गयीं,
जिंदा जिनसे उन पलों की बात हो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-07-19


बासुदेव अग्रवाल नमन USA


Monday, November 8, 2021

ग़ज़ल (देखली है शानो शौकत)

 ग़ज़ल (देखली है शानो शौकत)

बहर:- 2122  2122  212

देखली है शान-ओ-शौकत आपकी,
देखनी है अब हक़ीक़त आपकी।

झेलते आए हैं जिसको अब तलक,
दी हुई सारी ही आफ़त आपकी।

ट्वीटरों पर लम्बी लम्बी झाड़ते,
जानते सारे शराफ़त आपकी।

दुश्मनों की फ़िक्र नफ़रत देश से,
अब न भाती ये तिज़ारत आपकी।

खानदानी देश की संसद समझ,
हो गई काफ़ी सियासत आपकी।

हर जगह मासूमियत के चर्चे हैं,
हाय अल्लाह क्या नज़ाकत आपकी।

वक़्त अब भी कर दिखादें कुछ 'नमन',
इससे ही बच जाये इज्जत आपकी।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-11-2018

Wednesday, June 3, 2020

ग़ज़ल (आपकी दिल में समातीं चिट्ठियाँ)

बह्र:- 2122  2122  212

आपकी दिल में समातीं चिट्ठियाँ,
गुल महब्बत के खिलातीं चिट्ठियाँ।

दिल रहे बेचैन, जब मिलतीं नहीं
नाज़नीं सी मुस्कुरातीं चिट्ठियाँ।

दूर जब दिलवर बसे परदेश में,
आस के दीपक जलातीं चिट्ठियाँ।

याद में दिलबर की जब हो दिल उदास,
लाख खुशियाँ साथ लातीं चिट्ठयाँ।

रंज दें ये, दर्द दें ये, कहकहे,
रंग सब दिल में सजातीं चिट्ठियाँ।

सूने दिन युग सी लगें रातें हमें,
देर से जब उनकी आतीं चिट्ठियाँ।

जब 'नमन' बेज़ार दिल हो तब लिखो,
शायरी की मय पिलातीं चिट्ठियाँ।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-06-19

Friday, September 6, 2019

ग़ज़ल (आज कहने जा रहा कुछ अनकही)

बह्र:- 2122  2122  212

आज कहने जा रहा कुछ अनकही,
बात अक्सर मन में जो आती रही।

आज की सच्चाई मित्रों है यही,
सबके मन भावे कहो हरदम वही।

खोखली अब हो रही रिश्तों की जड़,
मान्यताएँ जा रहीं हैं सब ढ़ही।

खो रहे माता पिता सम्मान अब,
भावनाएँ आधुनिकता में बही।

आज बे सिर पैर की सब हाँकते,
हो गया क्या अब दिमागों का दही।

हर तरफ आतंकियों का जोर है,
निरपराधों के लहू से तर मही।

बात कड़वी पर खरी कहता 'नमन',
तय जमाना ही करे क्या है सही।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन',
तिनसुकिया
12-11-2018