Monday, October 30, 2023

चौपाई छंद "श्रावण-सोमवार"

सावन पावन भावन छाया।
सोमवार त्योहार सुहाया।।
शंकर किंकर-हृदय समाया।
वन्दन चन्दन देय सजाया।।

षटमुख गजमुख तात महानी।
तू शमशानी औघड़दानी।।
भंग भुजंग-सार का पानी।
आशुतोष तू दोष नसानी।।

चंदा गंगा सर पर साजे।
डमरू घुँघरू कर में बाजे।।
शैल बैल पर तू नित राजे।
शोभा आभा लख सब लाजे।।

गरिमा महिमा अति है न्यारी।
पापन-नाशी काशी प्यारी।।
वरदा गिरिजा प्रिया दुलारी।
पाप त्रि-ताप हरो त्रिपुरारी।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
29-07-19

Monday, October 23, 2023

छंदा सागर "कवित्त छंदाएँ"

                      पाठ - 20


छंदा सागर ग्रन्थ


"कवित्त छंदाएँ"


सवैया की तरह हिंदी में कवित्त या घनाक्षरी भी बहुत प्रचलित छंद है। कवित्त सवैया की तरह पूर्णतया गणाश्रित तो नहीं है परंतु वर्णों की संख्या  इसमें भी सुनिश्चित है। संकेतक आधारित पाठ में 'ख', 'फ', 'झ', 'छ' संकेतक से हमारा परिचय हुआ था जिनका कवित्त-छंदाओं में प्रचुर प्रयोग है। ये चारों संकेतक वर्ण की संख्या दर्शाते हैं जो क्रमशः 1, 2, 3, 4 है। यहाँ पुनः प्रत्येक संकेतक को विस्तार से समझाया गया है।

ख या खा :- एक वर्ण का शब्द जो लघु या दीर्घ कुछ भी हो सकता है।

फ या फा :- किसी भी मात्रा क्रम का द्विवर्णी शब्द। इसकी चार संभावनाएं हैं। 11, 12, 21, 22

झु या झू :- घनाक्षरी में यह संकेतक केवल झू या झु के रूप में प्रयुक्त होता है। इसका अर्थ है, तीन वर्ण का शब्द जिसके मध्य में लघु वर्ण हो। इसकी चार संभावनाएँ हैं -  111, 211, 112, 212।

छु या छू :- इसका अर्थ है लघु या दीर्घ कोई भी चार वर्ण जो केवल समवर्ण आधारित शब्द में हों। ये चार वर्ण दो द्विवर्णी शब्द में हो सकते हैं या एक चतुष्वर्णी शब्द में।

कवित्त या घनाक्षरी में मनहरण घनाक्षरी सबसे प्रमुख है और इसी को आधार बना कर यहाँ पर कुछ छंदाएँ प्रस्तुत हैं। घनाक्षरी का संसार अत्यंत विस्तृत है पर इन छंदाओं के आधार पर कोई भी सफल घनाक्षरी का सृजन कर सकता है।

घनाक्षरी में सम तुकांतता के चार पद होते हैं। घनाक्षरी के एक पद में 30 से 33 वर्ण तक होते हैं। इनमें से प्रथम 28 वर्ण के 4 - 4 वर्ण के सात खण्ड रहते हैं जो प्रत्येक घनाक्षरी में आवश्यक हैं। प्रायः घनाक्षरियों में इन 28 वर्ण का एक ही विधान रहता है जिस पर हम चर्चा करने जा रहे हैं। अंतिम खण्ड में घनाक्षरी के विभेद के अनुसार 2 से लेकर 5 वर्ण तक हो सकते हैं। मनहरण के पद के अंतिम खण्ड में 3 वर्ण रहते हैं। इस प्रकार मनहरण के पद में (28+3) कुल 31 वर्ण होते हैं।किसी भी घनाक्षरी के प्रथम 16 वर्ण के पश्चात यति अनिवार्य है। इस प्रकार मनहरण के पद में 16 वर्ण पर प्रथम यति तथा बाकी बचे 15 वर्ण के पश्चात पदांत यति रहती है। यह देखा गया है कि 8 - 8 वर्ण पर यति रखने से रचना में लालित्य की वृद्धि होती है अतः पद में चार यति रख कर रचना करें तो और अच्छा है जो कि कई घनाक्षरियों में तो नियमों के अंतर्गत भी है। ये चार यति 8, 8, 8, तथा बाकी बचे वर्ण पर रहती हैं।

घनाक्षरी की लय सम शब्द पर टिकी हुई है। घनाक्षरी में सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाला संकेतक 'छु' या 'छू' है, जिसका अर्थ ऊपर स्पष्ट किया गया है।

घनाक्षरी में विविधता लाने के लिए सम वर्ण शब्द के अतिरिक्त विषम वर्ण शब्द भी रखने आवश्यक हैं। ऐसे विषम वर्ण शब्दों का घनाक्षरी के पद में सफल संयोजन अत्यंत महत्वपूर्ण है। अतः जहाँ भी विषम वर्ण शब्द आये उसके तुरंत बाद दूसरा विषम वर्ण शब्द लाकर समकल बनाना आवश्यक है। इसकी संभावना के रूप में 3+1, 1+3, 1+1 आदि हैं। इस नियम के अपवाद के रूप में ऐसे दो विषम वर्ण शब्द के मध्य ऊलग (12) वर्ण का शब्द या शब्द आ सकते हैं जैसे दया, चलो आदि। उदाहरणार्थ "जो दया सभी पे करे"।

घनाक्षरी के किसी भी पद की रचना मुख्यतया 4 - 4 वर्णों के सात खण्ड पर आश्रित रहती है। अतः इसका प्रारूप समझना अत्यंत आवश्यक है।

चार वर्ण के खंड के तीन रूप हैं।

(1) 'छू' (2) झुख और (3) गन।

छू की व्याख्या कर दी गयी है।
'झू' की 4 संभावनाऐँ हैं - 111, 112, 211, 212
तथा 'खा' की 1 या 2 के रूप में दो संभावनाऐँ हैं।
झुख को निम्न रूप में भी रखा जा सकता है।
2 121 या 2 122
2 12 1 या 2 12 2 (तीन शब्द)
यह ध्यान में रहना चाहिये कि चार वर्ण के खण्ड का प्रथम वर्ण यदि एक अक्षरी शब्द है तो वह सदैव दीर्घ होना चाहिये।
'गन' अर्थात गुरु वर्ण तथा नगण। जिसका केवल 2 111 एक रूप है।

एक यति खण्ड के 4+4 के दो खण्डों का अष्टवर्णी खण्ड भी बनाया जा सकता है जिसके निम्न दो रूप हैं।
(1) झूलीखफ 
झूलीखफ की अनेक संभावनाऐँ हैं।
'झू' की 4 संभावनाऐँ ऊपर बताई गयी हैं।
'लीख' में 'ली' का अर्थ इलगा वर्ण (12) है, अतः इसके 121 और 122 ये दो रूप बनते हैं।
'फ' के (11, 12, 21, 22) चार रूप हैं।
(2) झूनफ
'न' का अर्थ नगण (111)।

8 वर्ण के यति खण्ड की संभावनाएँ देखें।

(1) छूदा - द्विगुणित 'छू'
(2) झुखधू - 'धू' संकेतक झुख का बिना यति का द्विगुणित रूप दर्शाता है।
(3) गनधू 
(4,5) छूझुख, झुखछू
(6,7) छूगन, गनछू
(8,9) झुखगन, गनझुख
(10) झूलीखफ  
(11) झूनफ

आठ वर्ण की यति उपरोक्त संभावना में से किसी भी संभावना की रखी जा सकती है।

इस प्रकार हमारे पास 8 वर्ण के यति खंड की समस्त संभावनाएं हैं। इन्हीं के आधार पर हम कुछ घनाक्षरी की छंदाएँ बनायेंगे।

छूदथछुर = यह मनहरण घनाक्षरी की 8 वर्ण पर यति की छंदा है। यह छंदा सम वर्णों पर आधारित है तथा सरलतम है। 'छू' संकेतक का अर्थ ऊपर स्पष्ट है। छूद का अर्थ चार चार वर्णों के दो खंड। 8 वर्णों की यति में सम-शब्दों के वर्ण की निम्न संभावनाऐँ बन सकती हैं।
4+4, 4+2+2, 2+4+2, 2+2+4, 2+2+2+2
किसी भी 2 को दो एक वर्णी शब्दों में तोड़ा जा सकता है। पर यदि चार के वर्ण खंड के प्रथम 2 को तोड़ते हैं तो प्रथम शब्द लघु नहीं होगा।
छूदथ का अर्थ हुआ यति के साथ 8 - 8 वर्णों के ऐसे 3 खंड। इसके पश्चात 'छु' का अर्थ फिर चार वर्णों का एक खंड। अंत का 'र' इसमें रगण (212) जोड़ता है। घनाक्षरी वर्ण आधारित संरचना है अतः 212 के किसी भी 2 को ओलल वर्ण यानी 11 में नहीं ले सकते। इस प्रकार इस छंदा का अर्थ हुआ-
8, 8, 8, 4 + (212) कुल 31 वर्ण।
8 में ऊपर वर्णित 11 संभावनाओं में से कोई भी ली जा सकती है। मनहरण में अंत में रगण (212) की विशेष लय आती है। पर विधान के अनुसार अंत में केवल गुरु वर्ण रहना चाहिए। अतः रगण के स्थान पर सगण (112), मगण (222) तथा यगण (122) भी रख सकते हैं।

झूलीखफ-थगनर:- झूलीखफ का अर्थ ऊपर स्पष्ट किया गया है।  'झूलीखफ' की तीन यति और अंत में गनर। झूलीखफ को छूझुख, झुखधू आदि से बदल कर छंदाओं के अनेक रूप बनाए जा सकते हैं।

छूगनथा-झूखय; 
गनझू-खथछुम
आदि विविध रूप की कई छंदाऐँ बन सकती हैं।

अब पद में केवल दो यति की छंदा:-

छूझूलिखफाछुण-छूझूलिखफर:-

इसमें अनेक संभावनाएं हैं। उनमें से उदाहरणार्थ एक रूप यह भी बन सकता है।
गाल लगा - गालगा लगाल गाल - ललगागा,
लगा गाल - गालल लगागा गागा गालगा।

'छुण' का अर्थ सम-वर्ण शब्द आधारित कोई भी चार वर्ण और यति।

छूझूलिखफझुखण-गनझुनफर:-

ऊपर चार वर्णी खंड तथा 8 वर्णी यति के कई संभावित रूप बताये गये हैं। घानाक्षरी के विविध पद तथा यति खंडों में इन रूप को अदल बदल कर अनेक प्रकार की विविधता से युक्त मनहरण घनाक्षरी का सृजन संभव है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
25-11-19

Monday, October 16, 2023

मधुमालती छंद "पर्यावरण"

पर्यावरण, मैला हुआ।
वातावरण, बिगड़ा हुआ।।
कोई नहीं, संयोग ये।
मानव रचित, इक रोग ये।।

धुंआ बड़ा, विकराल है।
साक्षात ये, दुष्काल है।।
फैला हुआ, चहुँ ओर ये।
जग पर विपद, घनघोर ये।।

पादप कटें, देखो जहाँ।
निर्मल हवा, मिलती कहाँ।।
मृतप्राय है, वन-संपदा।
सिर पर खड़ी, बन आपदा।।

दूषित हुईं, सरिता सभी।
भारी कमी, जल की तभी।।
मिलके तुरत, उपचार हो।
देरी न अब, स्वीकार हो।।

हम नींद से, सारे जगें।
लतिका, विटप, पौधे लगें।।
होकर हरित, वसुधा खिले।
फल, पुष्प अरु, छाया मिले।।

कलरव मधुर, पक्षी करें।
संगीत से, भू को भरें।।
दूषित हवा, सब लुप्त हों।
रोगाणु भी, सब सुप्त हों।।

दूषण रहित, संयंत्र हों।
वसुधा-हिती, जनतंत्र हों।।
वातावरण, स्वच्छंद हो।
मन में न कुछ, दुख द्वंद हो।।

क्यों नागरिक, पीड़ा सहें।
बन जागरुक, सारे रहें।।
बेला न ये, आये कभी।
विपदा 'नमन', टालें सभी।।
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मधुमालती छंद विधान -

मधुमालती छंद 14 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है। इसमें 7 - 7 मात्राओं पर यति तथा पदांत रगण (S1S) से होना अनिवार्य है । यह मानव जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 पद होते हैं और छंद के दो दो या चारों पद सम तुकांत होने चाहिए। इन 14 मात्राओं की मात्रा बाँट:- 2212, 2S1S है। S का अर्थ गुरु वर्ण है। 2 को 11 करने की छूट है पर S को 11 नहीं कर सकते।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
05-06-22

Sunday, October 8, 2023

छंदा सागर "वर्णिक छंद छंदाएँ"

                    पाठ - 19


छंदा सागर ग्रन्थ


"वर्णिक छंद छंदाएँ"


वर्णिक छंदों की विरासत हिंदी को संस्कृत साहित्य से प्राप्त हुई है। वर्णिक छंदों का अपना विशिष्ट महत्व है जिनमें लघु गुरु के क्रम सहित वर्ण सुनिश्चित रहते हैं। जब वर्ण सुनिश्चित हैं तो मात्राऐँ स्वयंमेव सुनिश्चित रहती हैं। 

वर्णिक छंदाओं में दो से अधिक लघु वर्ण का एक साथ प्रयोग प्रचुरता से होता है। इन छंदों में श्रृंखलाबद्ध लघु वर्ण का प्रयोग रचना में विविधता लाने के लिये किया जाता है। मात्रिक छंदाओं में समकल और विषमकल का प्रचुर प्रयोग हम देख चुके हैं। पर वर्णिक स्वरूप में कल के आधार पर मात्राओं में लोच संभव नहीं। क्योंकि इनमें ठीक प्रदत्त वर्णविन्यास के अनुसार रचना करना आवश्यक है। वर्णिक छंदों में इस कमी को लघु वर्णों के प्रयोग से दूर किया जाता है। 

जिन गणक में दो से अधिक लघु वर्ण एक साथ हैं वे निम्न हैं और इन गणक का इन छंदाओं में प्रचुर प्रयोग है।
1112 - ईनग 'नी'
11122 - एनागग 'ने'
11112 - ऊनालग 'नू'
11111 - ओनालल 'नो'
21112 - ऊभालग 'भू'
इनके अतिरिक्त नगण (111) तथा अंनल (1111) का भी प्रचुर प्रयोग इन छंदाओं में होता है। अंनल का संकेतक 'नं' है। कहीं कहीं अंभल (2111) 'भं' तथा ओभालल (21111) 'भो' का भी प्रयोग है।

वर्णिक छंदों में जहाँ भी तीन लघु एक साथ आते हैं वे त्रिकल का काम करते हैं। इन्हें 'नकल' 12 के रूप में, तथा 'भयानक लगे' 21 दोनों रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

चार लघु को भी आवश्यकतानुसार 
22 - मधुरिम, 1 12 - खूब मधुर, 12 1 - मधुर बड़ा, 1 2 1 - खूब मृदु लगे आदि किसी भी रूप में लिया जा सकता है। जवकि दो गुरु का केवल 22 रूप - मीठा आदि ही संभव है।

1111*2 यह अठकल का काम करता है। जिसे 4+4, 3+3+2, 2+3+3 आदि अनेक रूप में तोड़ा जा सकता है।

शास्त्रों में मात्रिक छंदों की तरह ही वर्णिक छंदों को भी उन में प्रयुक्त वर्ण संख्याओं के आधार पर एक एक विशिष्ट नाम देकर वर्गीकृत किया गया है। इस पाठ में कोष्टक में वह शास्त्र वर्णित नाम दिया गया है।  26 वर्ण प्रति पद तक के वर्णिक छंद सामान्य वर्ण वृत्त की श्रेणी में आते हैं तथा इससे अधिक के छंद दण्डक वर्णिक छंदों की श्रेणी में आते हैं। यहाँ आधार कम से कम 4 वर्ण प्रति पद रखा गया है जो कि किसी भी छंदा के लिये आवश्यक है।

वर्णिक छंदाओं के अंत में व या वा संकेतक का प्रयोग छंदा का वर्णिक स्वरूप दर्शाने के लिये होता है। यदि छंदा में दो से अधिक लघु एक साथ हैं तो 'व' 'वा' संकेतक का प्रायः लोप है क्योंकि इसे हम वर्णिक स्वरूप का द्योतक मान कर चल रहे हैं। जबकी मात्रिक छंदाओं में इक्के दुक्के स्थान पर दो से अधिक लघु वर्ण एक साथ आये हैं तो वहाँ अंत में ण णा संकेतक का प्रयोग है।

4:- (प्रतिष्ठा वृत्त)

1111 = नंकव (हरि)
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1112 = नीकव (सती/तरणिजा)
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1121 = संकव (पुंज)
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1211 = जंकव (धर/हरा)
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1221 = यंकव (उषा)
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2111 = भंकव (निसि)
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2121 = रंकव (धारि)
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2211 = तंकव (कृष्ण/वपु)
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2221 =  मंकव (धार/तारा)
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5:- (सुप्रतिष्ठा वृत्त)

11111 = नोकव (यमक/यम)
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11112 = नूकव (करता)
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11121 = नींकव (भजन)
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11211 = सोकव (नायक)
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6:- (गायत्री वृत्त)

111*2 = नद (दमन)
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111 122 = नय (शशिवदना/ चंडरसा)
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121 112 = जस (अपरभा)
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121*2 = जादव (शुभमाल/मालती)
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211*2 = भादव (राजीव)
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211 222 = भामव (अम्बा)
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221*2 = तादव (मंथन/ज्योति)
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221 122 = तायव (तनुमध्या)
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221 112 = तासव (वसुमती)
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7:- (उष्णिक् वृत्त)

111*2 2 = नादग (मधुमती)
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1111 121 = नंजा (करहंस)
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1111 211 = नंभा (सुवास)
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1112 122 = नीया (मनोज्ञा)
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1122 122 = सीयव (हंसमाला)
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112*2 2 = सदगावा (सुमाला)
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1211 122 = जंया (कुमारललिता)
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1212 111 = जीना (शारदी)
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2111 212 = भंरव (धुनी)
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2112 212 = भीरव (लीला)
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211*2 2 = भदगावा (तपी)
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2121 212 = रंरव (रक्ता/समानिका)
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2211 222 = तंमव (भक्ति)
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2212 221 = तीतव (सूर)
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2221 122 = मंयव (मदलेखा)
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2222 222 = मीमव (शिष्या)
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8:- (अनुष्टुप् वृत्त)

1111*2 = नंदा (मलयज)
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111*2 12 = नदली (कुसुम)
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111*2 22 = नदगी (तुंग/तुरंग)
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11111 212 = नोरा (पद्म/कमल)
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1112*2 = नीदा (गजगति)
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11121 212 = नींरा (नाराचिका)
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11211 112 = सोसा (विमलजला)
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11212 122 = सूयव (ईश/अनघ)
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12112 211 = जूभव (रामा)
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21211 222 = रोमव (गाथ)
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2121*2 = रंदव (मल्लिका/समानी)
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212*2 21 = रदगूवा (लक्ष्मी)
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212*2 22 = रदगीवा (पद्ममाला)
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211*2 22 = भदगीवा (चित्रपदा)
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21121 211 = भींभव (विपुला)
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21121 222 = भींमव (विज्ञात)
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2112 2111 = भीभल (मानवक्रीडा)
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22121 222 = तींमव (विभा)
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22121 212 = तींरव (नाराचिका)
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2211*2 = तंदव (रामा)
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22211 122 = मोया (हंसरुत)
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2221, 2221= मंधव (वापी)
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9:- (वृहती वृत्त)

111*2 112 = नादस (रतिपद/कमला)
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111*2 222 =  नादम (स्यामा)
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111*2 2, 22 =  नदगणगी (भुजंगशिशुसुता/युक्ता)
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11111 2122 = नोरी (बिंब)
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11112 1122 = नूसी (अमी)
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11112 2112 = नूभी (सारंगिक)
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111 122*2 = नायद (श्याम)
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111 121 212 =  नाजर (बुदबुद)
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111 221, 212 = नातणरा (कामना)
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112 121 212 = सजरावा (भुजंगसंगता)
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112 121 222 = सजमावा (विजात)
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121*2 122 = जदयावा (महर्षि)
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121 122*2 = जयदावा (भुआल)
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211 122*2 = भायद (निवास)
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211*3 = भाबव (शुभोदर)
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21122 2112 = भेभिव (मणिमध्या)
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212, 111 112 = रणनारा (हलमुखी)
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212 111 212 = रानर (भद्रिका)
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222 112*2 = मसदावा (रत्नकरा/रलका)
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222 211 112 = माभस (पाईता/पवित्रा)
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222 221 121 = मतयावा (वर्ष)
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10:- (पंक्तिः वृत्त)

11112, 11112 = नूधा (अमृतगति/त्वरितगति)
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111 212, 1212 = नारणजी (मनोरमा/सुन्दरी)
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112*3 1 = सबलावा (गूजरी)
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112*3 2 = सबगावा (मेघवितान/ वेगवती/कीर्ति)
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112 121 1122 = सजसी (सिंहनाद)
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211 111*2 2 = भनदागा (कुसुमसमुदिता)
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211*3 2 = भबगावा (सारवती)
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211*2, 2222 = भादंमीवा (बिंदु)
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2112 221 212 = भीतारव (दीपकमाला)
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211 222 2112 = भमभीवा (पावक)
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21122, 21122 = भेधव (चंपकमाला/रुक्मवती)
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2121*2 22 = रंदागिव (मयूरसारिणी/मयूरी)
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212*3 2 = रबगावा (बाला)
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22, 112*2 12 = गीणा-सदलीवा (उपस्थिता)
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22, 11222 112 = गीणासेसव (वामा)
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2211 112*2 = तंसद (चन्द्रमुखी)
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2212, 121 122 = तीणाजायव (धरणी)
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2212 121*2 = तीजादव (सेवा)
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222 1121 212 = मासंरव (शुद्ध विराट)
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2221 111 222 = मंनम (कुबलयमाला)
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22211, 11222 = मोणासेवा (पणव/पंडव)
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2222, 111 122 = मीणानय (मत्ता)
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2222 111 112 = मीनस (हंसी)
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11:- (त्रिष्टुप् वृत्त)

1111*2 112 = नंदस (दमनक)
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1111, 1111 222 = नंणा-नंमा (वृत्ता)
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1111*2 222 = नंदम (रथपद)
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111*2 21212 = नदरू (सुभद्रिका)
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11112 112*2 = नूसद (सुमुखी)
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1111 211, 2222 = नंभणमी (बाधाहारी)
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111 122, 21122 = नायण-भेवा (अनवसिता)
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111 212*2 12 = नारदली (राजहंसी)

(कहीं कहीं इसका नाम "इंदिरा छंद" भी मिलता है।)
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11122 212*2 = नेरद (शिवा)
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11211, 112 222 = सोणा-सामव (हित)
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112*3 11 = सबलूवा (शील)
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112*3 22 = सबगीवा (गगन)
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112*2, 11212 = सीदं-सूवा (उपचित्र)
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1122*2 112 = सीदासव (सायक)
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11222 211 112 = सेभस (विमला)
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121 112, 22122 = जासण-तेवा (उपस्थित)
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1212*2 122 = जीदायव (विलासिनी)
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121 221 12122 = जतजेवा (उपेन्द्रवज्रा)
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122*3 12 =  यबलीवा (भुजंगी)
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1222 122, 2122 = यीयण-रीवा (सुमेरु)
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211*2 21222 = भदरेवा (रोचक)
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211*3 12 = भबलीवा (कली)
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211*3 22 = भबगीवा (दोधक)
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2112 2111 121 = भीभंजा (सांद्रपद)
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21122, 111 122 = भेणानय (अनुकूला)
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2121 112*2 2 = रंसादग (स्वागता)
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212 111 21212 = रनरू (रथोद्धता)
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2121*2 212 = रंदारव (श्येनिका)
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21212, 111 212 = रूणानर (द्रुता)
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2122, 212*2 2 = रीणा-रदगावा (शाली)
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2211 211*2 2 = तंभदगावा (मोटनक) 
----

22112 112 122 = तूसायव (उपस्थिता) 
----

22121 112*2 = तींसद (चपला)
----

221*2 12122 = तदजेवा (इन्द्रवज्रा)
----

221*2,  22122 = तादं-तेवा (विध्वंकमाला/ग्राहि)
----

22211, 111 122 = मोणानय (माता)
----

222 112, 11112 = मासणनू (मयतनया)
----

2222, 111*2 2 = मीणा-नादग (भ्रमरविलासिता)
----

2222, 1122 122 = मीणा-सीयव (वातोर्मि)
----

2222 212*2 2 = मीरदगावा (शालिनी) (यति के साथ मीणा-रदगावा)
----

222*2, 12212 = मादं-यूवा (भारती)
----

22222, 222*2 = मेणा-मादव (माली)
----

12:- (जगती वृत्त)


111*4 = नाचा (तरलनयन)
----

111*2 2, 11212 = नदगणसू (उज्ज्वला)
----

111*2 212 121 = नदराजा (निवास)
----

111*2 21, 2212 = नदगुणती (मंदाकिनी, चंचलाक्षिका)
----

111*2 222 112 = नदमासा (राधारमण)
----

111*2 22, 2122 = नदगिणरी (पुट)
----

111*2 222 212 = नदमारा (ललित)
----

1111 122, 21121 = नंयणभीला (साधु)
----

11111 2121 212 = नोरंरा (वासना)
----

11111 2122 112 = नोरीसा (तारिणी)
----

11112 112*2 1 = नूसादल (मोतिमहार)
----

11112 112*2 2 = नूसादग (तामरस)
----

111 121, 121 212 = नाजण-जारा (वरतनु)
----

1111 211, 21212 = नंभणरू (मालती/यमुना)
----

11112 121, 1122 = नूजणसी (नवमालिनी/नवमालिका)
----

111 122 111 121 = नयनाजा (रमेश)
----

111 122, 111 122 = नायध (कुसुमविचित्रा)
----

111 122, 211 112 = नायण-भासा (मानस)
---

11112 211*2 2 = नूभादग (नभ)
----

1112 111*2 22 = नीनदगी (द्रुतपद)
----

1112*2 1122 = निदसी (मुरारी)
----

1112, 1112, 1212 = नीदौजी (प्रियवंदा)
----

1112 112*2 12 = नीसदली (द्रुतविलंबित/सुन्दरी)
----

111 212 111 122 = नरनाया (सुमति)
----

1112, 211*2 22 = नीणा-भदगी (श्रीपद)
----

11211 1122 112 = सोसिस (गिरिधारी)
----

112 121 112*2 = सजसादा (प्रमिताक्षरा)
----

1122, 111*2 12 = सीणा-नदली (रति)
----

121 112, 121 112 = जासध (जलोद्धतगति)
----

121*4 = जाचव (मौक्तिकदाम)
----

121*3 122 = जबयावा (धारी)
----

121 221 121 212 = जतजारव (वंशस्थ) 
----

122*3 121 = यबजावा (शैल)
----

1222*2 1221 = यिदयंवा (शास्त्र)
----

211 112, 111 122 = भासणनाया (मदनारी)
----

2111 121 21112 = भंजाभू (दान)
----

211*4 = भाचव (मोदक)
----

2111*2 2112 = भंदाभी (सौरभ)
----

21122, 111*2 2 = भेणा-नादग (पवन)
----

21122 211*2 2 = भेभदगावा (ललना)
----

211 222, 112 222 = भामण-सामव (कांतोत्पीड़ा)
----

212 11121 1112 = रानींनी (चंद्रवर्त्म)
----

2122*2 2121 = रिदरंवा (केहरी)
----

221 11121 1112 = तानींनी (सुरसरि)
----

221 121*2 212 = ताजदरावा (इंद्रवंशा)
----

221*4 = ताचव (सारंग/मैनावली)
----

22112 112*2 2 = तूसदगावा (गौरी)
----

221 122, 221 122 = तायाधव (मणिमाला)
----

221 211 121 212 = तभजारा (ललिता)
----

2212, 1122, 1211 = तीणा-सिणजालव (बनमाली)
----

2212 112, 22121 = तीसण-तींवा (भीम)
---

221*2 121 212 = तदजारव (इंद्रवंशा)
---

2212 222, 22122 = तीमण-तेवा (वाहिनी)
----

222 211 212 122 = मभरायव (पुंडरीक)
----

2222, 11112 222 = मीणानुम (जलधरमाला)
----

22222, 212*2 2 = मेणा-रदगावा (वैश्वदेवी)
----

2222*2,  2112 = मीदंभिव (भूमिसुता)
----

13:- (अति जगती वृत्त)

1111*2 21122 = नंदाभे (चंडी)
----

111*2 1212 212 = नदजीरा (क्षमा)
----

111*2 212, 2122 = नदरणरी (पुष्पमाला)
----

111*2 2, 212*2 = नदगण-रादा (चंद्रिका/उत्पलिनी)
----

111 112, 212*2 2 = नासण-रादग (चन्दरेखा)
----

11112 11212 122 = नूसूया (मृगेन्द्रमुख)
----

112*4 2 = सचगावा (तारक)
----

(112 121)*2 2 = सजधूगव (मंजुभाषिणी/सुनंदिनी)
----

112 121 112*2 2 = सजसादग (कलहंस)
----

121 2111 121 212 = जाभंजर (रुचिरा)
----

122*4 1 = यचलावा (कंद)
----

122*4 2 = यचगावा (कंदुक)
----

12222, 21111 112 = येणाभोसा (सुरेन्द्र)
----

122 222, 212*2 2 = यामणरादग (चंचरीकावली)
----

2111 111 211*2 = भंनाभद (पंकजवाटिका/कंजावलि)
----

2121*3 2 = रंबागव (राग)
----

2122*2, 21222 = रीदंरेवा (राधा)
----

2212, 111 121 212 = तीणा-नाजर (रुचि/प्रभावती)
----

221 122, 1222 222 = तायण-यीमव (त्राता)
----

222, 1111 212 122 = माणा-नंरय (प्रहर्षिणी)
----

2222 2112*2 2 = मीभीदागव (मत्तमयूर छंद)
----

2222, 2112*2 2 = मीणा-भिदगावा (माया)
----

22222, 122, 22222 = मेणा-यणमेवा (विलासी)
----

14:- (शर्करी वृत्त)


1111*2, 111 122 = नंदण-नाया (सुपवित्रा)
----

(111*2 2)*2= नादगधू (प्रहरणकलिका)
----

111*2 2, 2112 122 = नदगण-भीया (नदी)
----

111*2 2, 212*2 2 = नदगण-रादग (नान्दीमुखी)
----

111*2 2, 121*2 2 = नदगण-जादग (अपराजिता)
----

11112 121, 112 122 = नूजण-साया (कुमारी)
----

11112 121 112*2 = नूजासद (प्रमदा)
----

(111 212)*2 12 = नरधूली (ललितकेसर)
----

112, 112 121, 21212 = सणसाजण-रूवा (मंगली)
----

112*4 11 = सचलूवा  (मनोरम)
----

11212, 111 121 212 = सूणा-साजर  (सुदर्शना)
----

(112 121)*2 22 = सजधूगी  (प्रबोधनी)
----

11212, 111 212*2 = सूणा-नारद (मंजरी)
----

1122, 111*2 2222 = सीणा-नदमी (कुटिल)
----

1122*2, 111 122 = सीदं-नाया (प्रतिभा)
----

1212*3 12 = जिबलीवा (अनंद)
----

2111 111, 111*2 2 = भंनण-नादग (चक्र) 
----

2111*3 22 = भंबागी (इंदुवदना)
----

2211*2 2, 21122 = तंदागण-भेवा (बिहारी)
----

22121 112*2 122 = तींसादय (वसंततिलका)
----

22121 112, 112 121 = तींसण-साजा (मुकुंद)
----

2212 122, 2212 122 = तीयाधव (दिगपाल) (यह छंद मात्रिक स्वरूप में भी प्रचलित है।)
----

22211*2 1122 = मोदासी (रेवा)
----

222 1122, 222 1122 = मासीधव (अलोला)
----

2222, 111*2 2222 = मीणा-नदमी (मध्यक्षामा)
(यह छंद "मीनदमी" रूप में हंसश्येनी कहलाता है।)
----

2222 111*2 2212 = मीनदती (चन्द्रौरसा)
----

22222 111*2 222 = मेनादम (असबंधा) 
----

222 221, 1112 222 = मातण-नीमा (वासन्ती)
----

15:- (अतिशर्करी वृत्त)

111*2, 111*2 112 = नादण-नादस (शशिकला/चन्द्रावती/मणिगुण)
----

111*2 22, 212*2 2 = नदगीणा-रादग (मालिनी)
----

111*2 22, 121*2 2 = नदगीणा-जादग (उपमालिनी)
----

111 112 111 212*2 = नसनारद (विपिनतिलका)
----

1111 212 11121 212 = नंरानींरा (प्रभद्रिका/सुखेलक)
----

11112, 1211 121 212 = नूणा-जंजर (अतिरेखा) 
----

1121*2 221 1121 = संदतसंवा (दीपशिखा)
----

11212, 111*2 1122 = सूणा-नदसी (एला)
----

112 122 112, 112 122 = सायासण-सायव (ऋषभ)
----

1122 112, 2112*2 = सीसण-भीदव (मोहिनी)
----

1122 112, 211*2 22 = सीसण-भदगीवा (मंगल)
----

21111 112, 1121 112 = भोसण-संसा (पावन) = 15 वर्ण।
----

2111*3 212 = भंबर (निशिपाल) 
----

21122, 111 122, 2221 = भेणा-नायणमल (निश्चल)
----

2112 211 112, 21122 = भीभासणभे (दीपक)
----

21122 2112, 112*2 = भेभिण-सादव (भाम)
----

2121 112*3 12 = रंसबली (रमणीयक)
----

2121*3 212 = रंबारव (चामर)
----

212*2 2, 22112 122 = रदगण-तूयव (चन्द्रकांता)
----

2122*3 212 = रीबारव (सीता)
----

2212*3 221 = तीबातव (गीता)
----

22112 121, 2112 212 = तूजण-भीरव (कुंज)
----

2222 122, 221*2 22 = मीयण-तदगीवा (चंद्रलेखा)
----

22222, 112 122 1121 = मेणा-सयसंवा (धाम)
----

2222*2, 212*2 2 = मीदं-रदगावा (चित्रा)
----

16:- (अथाष्टिः वृत्त)

1111*4 = नंचा (अचलधृति)
----

1111 212 111 212*2 = नंरानारद (गरुड़रुत)

(यही छंद 'नंरानारय' रूप में  "वाणिनी" कहलाती है।)
----

1111 212 122, 112*2 = नंरायणसद (मणिकल्पलता)
----

1112, 11121 121, 1212 = निणनींजणजी (मंगलमंगना)
----

112 1111*2, 11122 = सानंदणने (रतिलेखा)
----

121*2, 211*3 2 = जादं-भबगावा (घनश्याम)
----

122 222, 1111 122*2 = यामण-नंयद (प्रवरललिता)
----

2121*4 = रंचव (ब्रह्मरूपक/चंचला)
----

211*5 2 = भपगावा (नील/अश्वगति)
----

21111 222, 22211 112 = भोमण-मोसा (चकिता)
----

2112 121, 111*2 112 = भीजण-नादस (ऋषभ गजविलसिता)
----

21121 211121 21112 = भिलभूंभू (धीरललिता)
----

211 212 122, 111*2 2 = भारायण-नादग (वरयुवती)
----

22212 122, 11212 112 = मूयण-सूसव (प्रीतिमाला)
----

2222, 111 112, 221 112 = मीणा-नासण-तासा (मदनललिता)
----

17:- (अथात्यष्टिः वृत्त)

111*2 2, 111 122, 1212 = नदगण-नायणजी (घनमयूर)
----

111 112, 2222, 121*2 2= नासण-मीणा-जादग (हरिणी)
----

111 112 121, 11212 212 = नसजाणासुर (मालाधर)
----

1111 212 111, 212 1112 = नंरानणरानी (समुदविलासिनी)
----

11112 121, 112*3 = नूजणसाबा (नर्दटक/नर्कुटक)
----

1111 212, 111 211*2 2 = नंरण-नभदागा (कोकिल)
----

1111 221, 121 111*2 2 = नंतण-जनदागा (रसना)
----

112*2 1212, 1112 122 = सदजीणा-नीया (अतिशायिनी)
----

112*3 1, 121*2 2 = सबलण-जदगावा (सारिका)
----

11222, 21122, 2222 222 = सेणा-भेणा-मीमव (तरंग)
----

1211 1212, 111 212*2 =  जंजिण-नारद (पृथ्वी)
----

1212*4 1 = जीचालव (भालचंद्र)
----

1222, 111 112, 121*2 2 = यीणा-नासण-जादग (कांता)
----

122 222, 1111 122 1112 = यामण-नंयानी  (शिखरिणी)
----

21121 21112, 111*2 2 = भींभुण-नादग (वंशपत्रपतिता)
----

21122, 21122, 2112 221 = भेधाभीतव (शूर)

212 112*4 12 = रासचलीवा (पुटभेद)
----

2222, 111 112, 121*2 2 = मीणा-नासण-जादग (भाराक्रांता)
----

2222, 111 112, 212*2 2 = मीणा-नासण-रादग (मंदाक्रांता)
----

2222, 111 112, 221*2 2 = मीणा-नासण-तादग (हारिणी)
----

2222 22211, 22112 222 = मीमोणा-तूमव (मंजारी)
----

18 :- (अथधृतिः वृत्त)


1111,1111 21122, 21122 = नंणानंभेणाभे (पंकजमुक्ता)
----

111*2 2122, 11212 212 = नदरीणासुर (लता)
----

11112 112, 11112 21121 = नूसण-नूभिल (अनुराग)
----

1111 212 1112, 1212 212 = नंरानिण-जीरा (नंदन)
----

111 122, 2222, 22211 222 = नायणमिण-मोमा (प्रज्ञा)
----

1112 121 122,  22111 222 = नीजायण-तोमा (मान)
----

112*3 1, 21111 212 = सबलणभोरा (केतकी)
----

11212 1122, 11212 1121 = सूसिण-सूसालव   (सिद्धिका)
----

12122, 121 112, 2112 221 = जेणा-जासण-भीता (अचल)
----

122 222, 111 112, 221 112 = यामण-नासण-तासा (सुधा)
----

21111*2, 21111 212 = भोदंभोरा (हीर)
----

211*5 112 = भापस (तीव्र)
----

211*3 21, 1211 112 = भबगुण-जंसा (मणिमाला)
----

21211*3 212 = रोबारव (हरनर्तक)
----

21211 212, 11212*2 = रोरण-सूदव (चंचरी/चर्चरी)
इसीका दूसरा प्रचलित रूप "रोबारव" है।

(यही 'रोरण-सुणसूवा' में "हरनर्तन" कहलाती है।
----

2212 11212, 11212 1121 = तीसुण-सूसालव (शारद)
----

2211 11212, 212*3 = तंसुण-राबव (लालसा)

(यही 'नदरण-राबव' में "नाराच/महामालिका" कहलाती है।)
----

22211 212, 11212, 11212 = मोरण-सुणसूवा (हरिणिप्लुता)
----

222 112 121 112, 221 112 = मसजासण-तासा (शार्दूल ललिता)
----

2222, 111*2 2, 212*2 2 = मीणा-नदगण-रादग (चित्रलेखा)
(यही 'मीणा-नदगण-तादग' में "केसर" कहलाती है)
(यही 'मीणा-नदगण-जादग' में "चला" कहलाती है)
----

22222, 111 112, 212*2 2 = मेणा-नासण-रादग (कुसुमित लता वेल्लिता)

(यही 'मेणा-तायण-रादग' में "सिंहविस्फूर्जिता" कहलाती है।)
----

222*2 211, 222 112 222 = मादाभण-मसमावा (मंजीरा)
----

19:- (अथातिधृतिः वृत्त)

11212*2 11, 2121 121 = सुदलूणा-रंजव (मणिमाल)
----

11211 1122, 111 122 1112 = सोसिण-नयनी (तरल)
----

11222, 1122 211, 222*2 2 = सेणा-सीभण-मदगावा (शम्भू)
----

12111, 12111, 12111, 1212 = जोथाजी (वरूथिनी)
----

1211 1212, 1112, 2212 112 = जंजिण-नीणा-तीसव (समुद्रतता)
----

121 112, 12111,  21211 122 = जासण-जोणा-रोयव (रतिलीला)
----

122 222, 111 112,  212*2 2 = यामण-नासण-रादग (मेघविस्फूर्जिता)

(यही 'यामण-नासण-तादग' में "छाया" कहलाती है।)
(यही 'यामण-नासण-जादग' में "मकरंदिका" कहलाती है।)
----

211 111 121, 2111 211*2 = भानाजण-भंभद (रसाल) = 19 वर्ण।
----

22, 2112 222, 112*2 2221 = गीणाभीमण-सदमालव (गिरिजा)
----

222 112 121 112, 221*2 2 = मसजासण-तादग (शार्दूलविक्रीडित)
----

2222 122, 111 112, 221 112 = मीयण-नासण-तासा (सुमधुरा)
----

2222 122, 111*2 2, 21112 = मीयण-नदगणभू (सुरसा)
----

22222, 111*2 2, 212*2 2 = मेणा-नदगण-रादग (फुल्लदाम)

(यही 'मेणा-नदगण-तादग' में "बिम्ब" कहलाती है।)
----

20:- (अथकृतिः वृत्त)

111*4, 111*2 21 = नाचंनदगू (भृंग)
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11112, 11112, 11112, 11112 = नूचौ (मदकलनी)
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11212*2 11, 21211 212 = सुदलूणा-रोरव (गीतिका/मुनिशेखर)
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1122 112121 112, 221*2 2 = सीसूंसण-तादग (मत्तेभविक्रीड़ित)
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122 222, 111*2 2, 212*2 2 = यामण-नदगण-रादग (शोभा)
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211, 111 122, 111*2 21212 = भणनायण-नदरू (दीपिकाशिखा)
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2121*5 = रंपव (वृत्त)
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2211*2 22, 1121 212 221 = तंदागिण-संरातव (सरिता)
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2222 122, 111*2 2, 221 112 = मीयण-नदगण-तासा (सुवदना)
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2222 122, 111 112, 212*2 2 = मीयण-नासण-रादग (सुवंशा)
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21:- (अथप्रकृतिः वृत्त)

1111 212 1112, 112*2 1212 = नंरानिण-सदजी (सरसी)
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11112 122, 21122, 211*2 21 = नूयणभेणा-भदगू (हरिहर)
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21111*2, 21111, 21111 2 = भोदं-भोणाभोग (धर्म)
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211*4, 211*2 222 = भाचं-भदमावा (अहि)
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21121 21111 111,  21221 122 = भींभोनण-रींया (नरेन्द्र/समुच्चय)
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211*3 2, 1121 111 1122 = भबगण-संनासी (मनविश्राम)
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2222 122, 111*2 2, 212*2 2 = मीयण-नदगण-रादग (स्त्रग्धरा)

सूयण-नदगण-रादग ('महास्त्रग्धरा' 22 वर्ण का एक वृत्त)
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22:- (अथsकृतिः वृत्त)

112*2 1212, 1122 11212 122 = सदजिण-सीसूयव (वसन्तमालिका)
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2112, 121 112, 121 112, 121 112 = भीणा-जसबौ (भद्रक)
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22211 2212, 11222, 11211 112 = मोतिण-सेणासोसव (लालित्य)
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2222*2,111*4 22 = मीदण-नचगी (हंसी)
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23:- (अथविकृतिः वृत्त)

1111 211*3, 211*3 2 = नंभाबण-भाबग (कनकमंजरी)
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1111 211*6 2 = नंभाटग (शैलसुता)
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1111 212 1112, (121 112)*2= नंरानिण-जसधू (आद्रितनया/अश्वललित)
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2222*2, 11111, 111*3 2 = मीदंनोणा-नाबग (मत्ताक्रीड़ा)
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24:- (अथसंस्कृतिः वृत्त)

21122, 111*2 2, 211*2 111 122 = भेणानदगण-भदनाया (तन्वी)
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25:- (अथतिकृतिः वृत्त)

21122, 21122, 1111*2, 111*2 2 = भेदौनंदण-नदगा (क्रौंच)

26:- (अथोत्कृतिः वृत्त)

111 122, 111 122, 1111*2, 111 122 = नायध-नंदणनाया (मकरंदा)
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2111 111, 2111 111, 2111 111, 21122 =  भंनथभे (रंजन)
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2222*2, 111*3 12, 121*2 2 = मीदण-नाबालिण-जादग (भुजंगविजृम्भित)
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31:-

2121*4, 2121*3 212 = रंचणरंबारव (कलाधर)
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32:-

1212*8 = जीठव (अनंगशेखर)
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अर्ध समपद वर्ण वृत्त:- जैसे मात्रिक छंदों में दोहा, सोरठा, उल्लाला आदि अर्ध समपद मात्रिक छंद हैं वैसे ही वर्ण वृत्त में भी अर्ध समपद वर्ण वृत्त होते हैं। अर्धसम छंदों में पद क्रमांक एक दो का जो विधान रहता है, पद क्रमांक तीन चार का भी वही विधान रहता है। पर इन दोनों विभाग के चरणों का विधान एक दूसरे से अलग रहता है। जैसे दोहा में प्रथम चरण में 13 मात्राएँ रहती हैं और दूसरे चरण में 11 मात्राएँ रहती हैं। अर्ध समपद छंद द्विपदी के रूप में लिखे जाते हैं और मात्रिक छंदों में दोनों चरण अर्ध विराम से एक दूसरे से अलग रहते हैं जबकि वर्णिक छंदों के चरण पूर्ण विराम चिन्ह से। द्विपदी स्वरूप दर्शाने के लिये मात्रिक छंदों की छंदाओं में अंत में ण के स्थान पर णी जोड़ा जाता वैसे ही वर्णिक छंदों में व के स्थान पर वी जोड़ा जाता है। वर्ण वृत्त के प्रथम चरण और द्वितीय चरण के अंत्याक्षर एक समान हों तो इन दोनों चरण की तुक मिलाई जाती है अन्यथा चरण एक और तीन तथा चरण दो और चार की तुक मिलाई जाती है।

111*2 21212, 1111 211 21212 = नदरूणा-नंभारूवी (अपरवक्त्र) 11, 12 वर्ण
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111*2 212 122, 1111 211 212 122 =
नदरायण-नंभारयवी (पुष्पिताग्र) 12, 13 वर्ण
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112*2 1122, 2 112*2 1122 = सदसिण-गासदसीवी (वेगवती) 10, 11 वर्ण
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112*2 1212, 1122 112 1212 = सदजीणा-सिसजीवी (वियोगिनी/वैतालीय) 10, 11 वर्ण
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112*3 12, 1112 112*2 12 = सबलीणा-नीसदलीवी (हरिणप्लुता) 11, 12 वर्ण
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112121 1122, 2 112121 1122 = सूंसिण-गासूंसीवी (केतुमती) 10, 11 वर्ण
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211*3 22, 1111 211*2 22 = भबगीणा-नंभदगीवी (द्रुतमध्या) 11, 12 वर्ण
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2211 212 122, 2 2211 212 122 = तंरायण-गातंरयवी (भद्रविराट) 10, 11 वर्ण
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221*2 12122, 121 221 12122 = तदजेणा-जतजेवी (आख्यानिकी) 11, 11 वर्ण
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112*3 12, 211*3 22 = सबलीणा-भबगीवी (उपचित्र) 11, 11 वर्ण
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2121*3, 1212*3 2 = रंबण-जीबगवी (यवमती) 12, 13 वर्ण

"यवमती" पुकार:-

"शूलधारिणी महेश्वरी प्रचंड। निशुंभ और शुंभ की विनाशकारी।।
शत्रु को करो विदार खंड खंड। समस्त भक्त की सदैव पीड़ हारी।।

मात अंबिका धरो कराल वेश। सभी यहाँ निशंक आज आततायी।।
माँ पुकारता तुझे समस्त देश। सदैव तू रही अपार शांतिदायी।।"
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4 1222, 4 1212 = छायिण-छाजीवी (अनुष्टुप) 8, 8 वर्ण (छ या छा संकेतक का अर्थ है चार वर्ण जिनमें लघु दीर्घ का कोई भी क्रम हो सकता है।)
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वर्ण विषम छंद:- छंद के चारों पद विषम होते हैं। जिन पद का अंत समान होता है, उनकी तुक मिला दी जाती है। रचना चतुष्पदी के रूप में होती है। संकेतक अंत में 'वू' के रूप में है।

112 121 1121, 
1111 121 212, 
2121 112*2, 
(112 121)*2 2 = सजसंणा-नंजारण-रंसादण-सजधुगवू (सौरभक)

"सौरभक" चाह:-

"यह चाह एक मन माँहि।
हृदय बस कृष्ण में रहे।।
नित्य जीभ घनश्याम कहे।
मन श्याम नाम रस-धार में बहे।।"
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222 1121 212 1122, 
11211 11212 122, 
(111*2 112)*2,
1111*2 112*2 2
मासंरासिण-सोसूयण-नदसाधुण-नंदासदगावू (वर्द्धमान)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Wednesday, October 4, 2023

हाइकु (ये बालक कैसा)

अस्थिपिंजर
कफ़न में लिपटा
एक ठूँठ सा।

पूर्ण उपेक्ष्य
मानवी जीवन का
कटु घूँट सा।

स्लेटी बदन
उसपे भाग्य लिखे
मैलों की धार।

कटोरा लिए
एक मूर्त ढो रही
तन का भार।

लाल लोचन
अपलक ताकते
राहगीर को।

सूखे से होंठ
पपड़ी में छिपाए
हर पीर को।

उलझी लटें
बरगद जटा सी
चेहरा ढके।

उपेक्षित हो
भरी राह में खड़ा
कोई ना तके।

शून्य चेहरा
रिक्त फैले नभ सा
है भाव हीन।

जड़े तमाचा
मानवी सभ्यता पे
बालक दीन।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
31-07-2016