Sunday, January 20, 2019

वसन्त तिलका छंद ("मनोकामना")

मैं पूण्य भारत धरा, पर जन्म लेऊँ।
संस्कार वैदिक मिले, सब देव सेऊँ।।
यज्ञोपवीत रखके, नित नेम पालूँ।
माथे लगा तिलक मैं, रख गर्व चालूँ।।

गीता व मानस करे, दृढ़ राह सारी।
सत्संग प्राप्ति हर ले, भव-ताप भारी।।
सिद्धांत विश्व-हित के, मन में सजाऊँ।
हींसा प्रवृत्ति रख के, न स्वयं लजाऊँ।।

सारी धरा समझलूँ, परिवार मेरा।
हो नित्य ही अतिथि का, घर माँहि डेरा।।
देवों समान उनको, समझूँ सदा ही।
मैं आर्ष रीति विधि का, बन जाऊँ वाही।।

प्राणी समस्त सम हैं, यह भाव राखूँ।
ऐसे विचार रख के, रस दिव्य चाखूँ।।
हे नाथ! पूर्ण करना, मन-कामना को।
मेरी सदैव रखना, दृढ भावना को।।
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वसन्त तिलका (लक्षण छंद)

"ताभाजजागगु" गणों पर वर्ण राखो।
प्यारी 'वसन्त तिलका' तब छंद चाखो।।

"ताभाजजागगु" = तगण, भगण, जगण, जगण और दो गुरु।

221  211  121  121  22

वसन्त तिलका चौदह वर्णों का छन्द है। यति 8,6 पर रखने से छंद मधुर लगता है पर आवश्यक नहीं है। उदाहरण देखिए:

नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा | 
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां में कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च ||
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
08-01-2019

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