भाषा हिन्दी गौरव बड़पन की दाता।
देवी-भाषा संस्कृत मृदु इसकी माता।।
हिन्दी प्यारी पावन शतदल वृन्दा सी।
साजे हिन्दी विश्व पटल पर चन्दा सी।।
हिन्दी भावों की मधुरिम परिभाषा है।
ये जाये आगे बस यह अभिलाषा है।।
त्यागें अंग्रेजी यह समझ बिमारी है।
ओजस्वी भाषा खुद जब कि हमारी है।।
गोसाँई ने रामचरित इस में राची।
मीरा बाँधे घूँघर पग इस में नाची।।
सूरा ने गाये सब पद इस में प्यारे।
ऐसी थाती पा कर हम सब से न्यारे।।
शोभा पाता भारत जग मँह हिन्दी से।
जैसे नारी भाल सजत यक बिन्दी से।।
हिन्दी माँ को मान जगत भर में देवें।
ये प्यारी भाषा हम सब मन से सेवें।।
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असबंधा छंद विधान -
"मातानासागाग" रचित 'असबंधा' है।
ये तो प्यारी छंद सरस मधु गंधा है।।
"मातानासागाग" = मगण, तगण, नगण, सगण गुरु गुरु
222 221 111 112 22 = 14 वर्ण की वर्णिक छंद। दो दो या चारों चरण समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
12-02-2017
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