Saturday, October 29, 2022

सुगम्य गीता (तृतीय अध्याय 'प्रथम भाग')

तृतीय अध्याय (भाग -१)

श्रेयस्कर यदि कर्म से, आप मानते ज्ञान। 
फिर क्यों झोंकें घोर रण, जो है कर्म प्रधान।।१।। 

समझ न पाया ठीक से, कर्म श्रेय या बुद्धि।
निश्चित कर प्रभु कीजिए, भ्रम से मन की शुद्धि।।२।। 

अर्जुन के सुन कर वचन, बोले श्री भगवान। 
दो निष्ठा संसार में, जिन्हें पुरातन जान।।३।। 

ज्ञानयोग से सांख्य की, हुवे साधना पार्थ। 
निष्ठा जुड़ती योग की, कर्मयोग के साथ।।४।। 

प्राप्त न हो निष्कर्मता, बिना कर्म प्रारम्भ। 
कर्म-त्याग नहिं सिद्धि दे, देवे हठ अरु दम्भ।।५।। 

कर्म रहित नहिं हो सके, मनुज किसी भी काल।
कर्म हेतु करता विवश, प्रकृति जनित गुण जाल।।६।। 

इन्द्रिन्ह हठ से रोक शठ, बैठे बगुले की तरह।
भोगे मन से जो विषय, मिथ्याचारी मूढ़ वह।।७।। उल्लाला 

वश में कर संकल्प से, सभी इन्द्रियाँ धैर्य धर।
कर्मेन्द्रिय से जो करे, कर्मयोग वह श्रेष्ठ नर।।८।। उल्लाला 

शास्त्र विहित कर्त्तव्य कर, यह अकर्म से श्रेष्ठ।
जीवन का निर्वाह भी, कर्म बिना न यथेष्ठ।।९।। 

यज्ञ हेतु नहिं कर्म जो, कर्म-बन्ध दे पार्थ। 
जग के नित कल्याण हित, यज्ञ-कर्म लो हाथ।।१०।। 

यज्ञ सहित रच कर प्रजा, ब्रह्मा रचे विधान। 
यज्ञ तुम्हें करते रहें, इच्छित भोग प्रदान।।११।। 

करो यज्ञ से देवता, सब विध तुम सन्तुष्ट। 
यूँ ही वे तुमको करें, धन वैभव से पुष्ट।।१२।। 

बढ़े परस्पर यज्ञ से, मेल जोल के भाव। 
इससे उन्नत सृष्टि हो, चहुँ दिशि होय उछाव।।१३।। 

यज्ञ-पुष्ट ये देवता, बिन माँगे सब देय। 
देव-अंश राखे बिना, भोगे वो नर हेय।।१४।। 

अंश सभी का राख जो, भोगे वह अघ-मुक्त। 
देह-पुष्टि स्वारथ पगी, सदा पाप से युक्त।।१५।। 

प्राणी उपजें अन्न से, बारिस से फिर अन्न। 
वर्षा होती यज्ञ से, यज्ञ कर्म-उत्पन्न।।१६।। 

कर्म सिद्ध हों वेद से, अक्षर-उद्भव वेद। 
अतः प्रतिष्ठित यज्ञ में, शाश्वत ब्रह्म अभेद।।१७।। 

चलें सभी इस भाँति, सृष्टि चक्र प्रचलित यही।
जरा न उनको शांति, भोगों में ही जो पड़े।।१८।।सोरठा 

छोड़ राग अरु द्वेष, अपने में ही तृप्त जो। 
करना कुछ नहिं शेष, आत्म-तुष्ट नर के लिए।।१९।।सोरठा छंद

कुछ न प्रयोजन कर्म में, आत्म-तुष्ट का पार्थ। 
नहीं प्राणियों में रहे, लेश मात्र का स्वार्थ।।२०।। 

अतः त्याग आसक्ति सब, सदा करो कर्त्तव्य। 
ऐसे ही नर श्रेष्ठ का, परम धाम गन्तव्य।।२१।। 

इति सुगम्य गीता तृतीय अध्याय (भाग - 1)

रचयिता
बासुदेव अग्रवाल नमन 


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