दोहा छंद में दो मुक्तक
(1)
लाज लसित लोचन हुये, बजे प्रीत के साज।
साज सजन के सज रहे, मग्न हुई मैं आज।
आज मिलन की चाह में, सुध-बुध भूला देह।
देह बाट पिय की लखे, भारी भर कर लाज।।
(2)
राजनीति दूषित हुई, नेता हैं बिन लाज।
लाज स्वार्थ में छिप गई, भ्रष्ट हुये सब आज।
आज देश में हर तरफ, बस कुर्सी की भूख।
भूख घिरी जनता इधर, कोसे यह जन-राज।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
25-05-19
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