पीड़ हृदय की, किससे कहूँ।
रुदन अकेला, करके सहूँ।।
शून्य ताकता, घर में रहूँ।
खुद पर पछता, निश दिन दहूँ।।
यौवन में जब, अंधा हुआ।
मदिरा पी पी, खेला जुआ।।
राड़ मचा कर, सबसे रखी।
कभी न घर की, पीड़ा लखी।।
दारा सुत सब, न्यारे हुए।
कौन भाव अब, मेरे छुए।।
बड़ा अकेला, अनुभव करूँ।
पड़ा गेह में, आहें भरूँ।।
संस्कारों में, बढ कर पला।
परिपाटी में, बचपन ढला।।
कूसंगत में, कैसे बहा।
सोच सोच अब, जाऊँ दहा।।
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चौबोला छंद विधान -
चौबोला छंद 15 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है। यह तैथिक जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 पद होते हैं और छंद के दो दो या चारों पद सम तुकांत होने चाहिए। इन 15 मात्राओं की मात्रा बाँट:- अठकल, चौकल+1S (लघु गुरु वर्ण) है। यति 8 और 7 मात्राओं पर है। अठकल में 4 4 या 3 3 2 हो सकते हैं। चौकल में 22, 211, 112 या 1111 हो सकते हैं।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
08-06-22
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