विपद में सारा देश।
चतुर्दिक कटु परिवेश।।
समझ लो भू की पीर।
उठो अब जागो वीर।।
सभी की अपनी राग।
लगी विघटन की आग।।
युवक अब तुम लो जाग।
उदासी का कर त्याग।।
बजें अलगावी ढोल।
लजाते देश कुबोल।।
भयंकर फैला स्वार्थ।
उठो जन-जन बन पार्थ।।
बनो प्रलयंकर रुद्र।
उफनते उग्र समुद्र।।
मचादो तांडव घोर।
मिटा खलुओं का जोर।।
त्यजो तंद्रा प्राचीन।
नहीं हो मन से हीन।।
दिखादो युवकों आज।
टिकी है तुम पर लाज।।
हुये थे हम आजाद।
कुटिल बँटवारा लाद।।
न हो फिर वैसा बोध।
'नमन' सबसे अनुरोध।।
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तांडव छंद विधान -
तांडव छंद 12 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। यह आदित्य जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 12 मात्राओं की मात्रा बाँट - 1 22 22 21(ताल) है। इस छंद के प्रारंभ में भी लघु वर्ण है तथा अंत में भी लघु वर्ण है। प्रारंभिक लघु के पश्चात दो चौकल ओर फिर गुरु लघु वर्ण हैं।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
29-05-22
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