Saturday, June 17, 2023

राधेश्यामी छंद "नसबन्दी बनाम नोटबन्दी"

राधेश्यामी छंद / मत्त सवैया

आपातकाल पचहत्तर का, जिसकी यादें मन में ताजा।
तब नसबन्दी ने लोगों का, था खूब बजाया जम बाजा,
कोई भी बचे नहीं इससे, वे विधुर, वृद्ध, या फिर बच्चे।
सब ली चपेट में नसबन्दी, किन्नर तक भी झूठे सच्चे।

है ज़रा न बदला अब भी कुछ, सरकार नई पर सोच वही,
छाया आर्थिक आपातकाल, जनता जिस में छटपटा रही।
आपातकाल ये कुछ ऐसा, जो घोषित नहीं अघोषित है,
कुछ ही काले धन वालों से, जनता अब सारी शोषित है।

तब कहर मचाई नसबन्दी, थी त्राहि त्राहि हर ओर मची,
अब नोटों की बन्दी कर के, मोदी ने वैसी व्यथा रची।
तब जोर जबरदस्ती की उस, बन्दी का दुख सबने झेला,
अब आकस्मिक इस बन्दी में, लोगों का बैंकों में रेला।

भारत की सरकारों का तो, बन्दी से है गहरा नाता,
लेकिन बेबस जनता को यह, थोड़ा भी रास नहीं आता।
नस की हो, नोटों की हो या, बन्दी चाहे हो भारत की,
जनता को सब में पिसना है, कोई न सुने कुछ आरत की।

तर्कों में, वाद विवादों में, संकट का हल है कभी नहीं,
सरकारी लचर व्यवस्था का, रहता हरदम परिणाम वहीं।
तब भी न ज़रा तैयारी थी, वह अब भी साफ़ अधूरी है,  
सरकार स्वप्न सुंदर दिखला, जनता से रखती दूरी है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-11-16

5 comments:

  1. जनता को अपना कर्तव्य समझकर अच्छे लोगों को चुनना होगा, यदि मतदान ही नहीं करेंगे तो ऐसा ही होगा

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    1. बासुदेव अग्रवाल नमनMonday, June 19, 2023 10:34:00 AM

      बिल्कुल सत्य कथन।

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  2. बासुदेव अग्रवाल नमनMonday, June 19, 2023 10:37:00 AM

    आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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  3. सुंदर प्रस्तुति

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    1. बासुदेव अग्रवाल नमनMonday, June 19, 2023 5:51:00 PM

      आपका आत्मिक आभार।🙏🙏

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