Tuesday, May 21, 2024

चन्द्र शेखर आज़ाद (मुक्तक)

         

(चन्द्र शेखर आज़ादजी की पुण्य तिथि पर। जन्म 1906।)

तुम शुभ्र गगन में भारत के, चमके जैसे चन्दा उज्ज्वल।
ऐंठी मूंछे, चोड़ी छाती, आज़ाद खयालों के प्रतिपल।
अंग्रेजों को दहलाया था, दे अपना उत्साही यौवन।
हे शेखर! 'नमन' तुम्हें शत शत, जो खिले हृदय में बन शतदल।।

(मत्त सवैया आधारित)

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया 

Tuesday, May 14, 2024

योग-महिमा (कुण्डलिया)

योग साधना देन है, भारत की अनमोल।
मन को उत्साहित करे, काया करे सुडोल।
काया करे सुडोल, देन ऋषियों की भारी।
रखे देह से दूर, रोग की विपदा सारी।
निर्मल करती गात, शुद्ध यह करे भावना।
कहे 'बासु' कविराय, करो नित योग साधना।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
21-06-2016

Tuesday, May 7, 2024

"ग्रीष्म वर्णन"

प्रसारती आज गर्मी पूर्ण बल को
तपा रही है आज पूरे अवनि तल को।
दर्शाते हुए उष्णता अपनी प्रखर
झुलसा रही वसुधा को लू की लहर।।1।।

तप्त तपन तप्त ताप राशि से अपने
साकार कर रहा है प्रलय सपने।
भाष्कर की कोटि किरणें भी आज
रोक रही भूतल के सब काम काज।।2।।

कर रहा अट्टहास ग्रीष्म आज जग में
बहा रहा पिघले लावे को रग रग में।
समेटे अपनी हंसी में जग रुदन
कर रहा तांडव नृत्य हो खुद में मगन।।3।।

व्यथा से व्याकुल हो रहा भू जन
ठौर नहीं छुपाने को कहीं भी तन।
त्याग आवश्यक कार्य कलाप वह सब
व्यथा सागर में डूबा हुआ है यह भव।।4।।

झुलसती भू सन्तान ग्रीष्म प्रभाव से
द्रुम लतादिक भी बचे न इसके दाव से।
झुलसाते असहाय विटप समूह को
बह रहा आतप ले लू समूह को।।5।।

हो विकल पक्षी भटक रहे पुनि पुनि
त्याग कल क्रीड़ा अरु समधुर धुनि।
अनेक पशु टिक अपने लघु आवास में
टपका रहे विकलता हर श्वास में।।6।।

शुष्क हुए सर्व नदी नद कूप सर
दर्शाता जलाभाव तपन ताप कर।
अति व्यथित हो इस सलिल अभाव से
बन रहे जन काल ग्रास इस दाव से।।7।।

खौला उदधि जल को भीषण ताप से
झुलसा जग जन को इस संताप से।
मुदित हो रहा ग्रीष्म अपने भाव में
न नाम ले थमने का अपने चाव में।।8।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
1970 की लिखी कविता

Thursday, May 2, 2024

अयोध्या मंदिर निर्माण (दोहे)

 दोहा छंद

अवधपुरी भगवा हुई, भू-पूजन की धूम।
भारतवासी के हृदय, आज रहे हैं झूम।।

दिव्य अयोध्या में बने, मंदिर प्रभु का भव्य।
सकल देश का स्वप्न ये, सबका ही कर्तव्य।।

पाँच सदी से झेलते, आये प्रभु वनवास।
असमंजस के मेघ छँट, पूर्ण हुई अब आस।।

मन में दृढ संकल्प हो, कछु न असंभव काम।
करने की ठानी तभी, खिला हुआ प्रभु-धाम।।

डर बिन सठ सुधरैं नहीं, बड़ी सार की बात।
काज न हो यदि बात से, आवश्यक तब लात।।

रामलला के नाम से, कटते सारे पाप।
रघुपति का संसार में , ऐसा प्रखर प्रताप।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
05-08-20