शुरू बेवफ़ाई की जब भी, चर्चाएँ हो जाती हैं,
असफल प्रेम कथाओं की सब, यादें मन में छाती हैं,
इश्क़ मुहब्बत छोड़ और भी, ग़म दुनिया में हैं यारो,
आज बेवफ़ा नेताओं की, चालें कम न रुलाती हैं।
(ताटंक छंद)
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वार पीठ में करते देखा, लोगों को नज़दीकी से,
हुआ सामना तभी हमारा, दुनिया की तारीकी से,
देख बेवफ़ाई अपनों की, अश्क़ लहू के पीते हैं,
रंग बदलती इस दुनिया का, चखा स्वाद बारीकी से।
(ताटंक छंद)
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जो खाया जख्म अपनों से बताया भी नहीं जाता।
लगा है दिल के भीतर ये दिखाया भी नहीं जाता।
बड़ा बेचैन हूँ यारो करूँ भी तो करूँ क्या मैं।
कहीं अब और दुनिया छोड़ जाया भी नहीं जाता।।
(विधाता छंद वाचिक)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
29-08-17
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