गिल्ली डंडा खेलते।
ग्राम्य बाल सब झूमते।।
क्रीड़ा में तल्लीन हैं।
मस्ती के आधीन हैं।।
फर्क नहीं है जात का।
रंग न देखे गात का।।
ऊँच नीच की त्याग घिन।
संग खेलते भेद बिन।।
खेतों की ये धूल पर।
आस पास को भूल कर।।
खेल रहे हँस हँस सभी।
झगड़ा भी करते कभी।।
बच्चों की किल्लोल है।
हुड़दंगी माहोल है।।
भेदभाव से दूर हैं।
अपनी धुन में चूर हैं।।
खुले खेत फैले जहाँ।
बाल जमा डेरा वहाँ।।
खेलें नंगे पाँव ले।
गगन छाँव के वे तले।।
नहीं प्रदूषण आग है।
यहाँ न भागमभाग है।।
गाँवों का वातावरण।
'नमन' प्रकृति का आभरण।।
***********
चंद्रमणि छंद विधान -
चंद्रमणि छंद 13 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। यह भागवत जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 13 मात्राओं की मात्रा बाँट ठीक दोहा छंद के विषम चरण वाली है जो 8 2 1 2 = 13 मात्रा है। अठकल = 4 4 या 3 3 2।
यह छंद उल्लाला छंद का ही एक भेद है। उल्लाला छंद साधारणतया द्वि पदी छंद के रूप में रचा जाता है जिसमें ठीक दोहा छंद की ही तरह दोनों सम चरण की तुक मिलाई जाती है। जैसे -
उल्लाला छंद उदाहरण -
"जीवन अपने मार्ग को, ढूँढे हर हालात में।
जीने की ही लालसा, स्फूर्ति नई दे गात में।।"
******************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
30-05-22
बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआपका हृदयतल से आभार।
Delete