रो
मत
नादान,
छोड़ दे तू
सारा अज्ञान।
जगत का रहे,
धरा यहीं सामान।।1।।
तू
कर
स्वीकार,
उसे जो है
जग-आधार।
व्यर्थ और सारे,
तत्व एक वो सार।।2।।
ये
तन
दीपक,
बाती मन
तेल मनन
शब्दों का स्फुरण
काव्य-ज्योति स्फुटन।।3।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-04-19
इस ब्लॉग को “नयेकवि” जैसा सार्थक नाम दे कर निर्मित करने का प्रमुख उद्देश्य नये कवियों की रचनाओं को एक सशक्त मंच उपलब्ध कराना है जहाँ उन रचनाओं की उचित समीक्षा हो सके, साथ में सही मार्ग दर्शन हो सके और प्रोत्साहन मिल सके। यह “नयेकवि” ब्लॉग उन सभी हिन्दी भाषा के नवोदित कवियों को समर्पित है जो हिन्दी को उच्चतम शिखर पर पहुँचाने के लिये जी जान से लगे हुये हैं जिसकी वह पूर्ण अधिकारिणी है। आप सभी का इस नये ब्लॉग “नयेकवि” में हृदय की गहराइयों से स्वागत है।
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