Friday, November 25, 2022

पिरामिड (रो, मत)

रो
मत
नादान,
छोड़ दे तू
सारा अज्ञान।
जगत का रहे,
धरा यहीं सामान।।1।।

तू
कर 
स्वीकार,
उसे जो है
जग-आधार।
व्यर्थ और सारे,
तत्व एक वो सार।।2।।


ये
तन
दीपक,
बाती मन
तेल  मनन
शब्दों का स्फुरण
काव्य-ज्योति स्फुटन।।3।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-04-19

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