वयन सगाई अलंकार / वैण सगाई अलंकार
आदि देव दें आसरा, आप कृपालु अनंत।
अमल बना कर आचरण, अघ का कर दें अंत।।
काली भद्रा कालिका, कर में खड़ग कराल।
कल्याणी की हो कृपा, कटे कष्ट का काल।।
गदगद ब्रज की गोपियाँ, गिरधर मले गुलाल।
ग्वालन होरी गावते, गउन लखे गोपाल।।
चन्द्र खिलाये चांदनी, चहकें चारु चकोर।
चित्त चुराके चंचला, चल दी सजनी चोर।।
जगमग मन दीपक जले, जब मैं हुई जवान।
जबर विकल होगा जिया, जरा न पायी जान।।
ठाले करते ठाकरी, ठाकुर बने ठगेस।
ठेंगा दिखला ठगकरी, ठग करके दे ठेस।।
डगमग चलती डोकरी, डट के लेय डकार।
डिग डिग तय करती डगर, डांड हाथ में डार।।
तड़प राह पिय की तकूँ, तन के बिखरे तार।
तारों की लगती तपिश, तीखी ज्यों तलवार।।
दान हड़पने की दिखे, दर-दर आज दुकान।
दाता ऐसों को न दे, दे सुपात्र लख दान।।
नख सिख दमकै नागरी, नस नस भरा निखार।
नागर क्यों ललचे नहीं, निरख निराली नार।।
पथ वैतरणी है प्रखर, पापों की सर पोट।
पार करें किस विध प्रभू, पातक जगत-प्रकोट।।
भूखे पेट न हो भजन, भर दे शिव भंडार।
भक्तों का करके भरण, भोले मेटो भार।।
मधुर ओष्ठ हैं मदभरे, मोहक ग्रीव मृणाल।
मादक नैना मटकते, मन्थर चाल मराल।।
यत्न सहित सब योजना, योजित करें युवान।
यज्ञ रूप तब देश यह, यश के चढ़ता यान।।
रे मन तुझ को रमणियाँ, रह रह रहें रिझाय।
राम-भजन में अब रमो, राह दिखाती राय।।
लोभी मन जग-लालसा, लेवे क्यों तु लगाय।
लप लप करती यह लपट, लगातार ललचाय।।
वारिज कर में शुभ्र वर, वाहन हंस विहार।
विद्या दे वागीश्वरी, वारण करो विकार।।
सदा भजो मन साँवरा, सारे जग का सार।
सजन मात पितु या सखा, सभी रूप साकार।।
हरि की मोहक छवि हृदय, हरपल रहे हमार।
हर विपदा भव की हरे, हरि के हाथ हजार।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
20-11-2018
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