Friday, March 10, 2023

छंदा सागर (गुरु छंदाएँ)

                        पाठ - 08

छंदा सागर ग्रन्थ

"गुरु छंदाएँ"

इसके पिछले पाठ में हमने वृत्त छंदाओं का विस्तारपूर्वक अध्ययन किया। इस पाठ में हम गुरु छंदाओं पर प्रकाश डालेंगे। पंचम पाठ "छंद के घटक - छंदा" में गुरु छंदा की परिभाषा दी गई है। गुरु छंदाएँ वाचिक, मात्रिक, वर्णिक तीनों स्वरूप में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। अतः इस पाठ में भी वृत्त छंदाओं की तरह तीनों स्वरूप की छंदाएँ दी गई हैं। साथ ही अंत में लघु वृद्धि की भी अलग से छंदाएँ दी गई हैं।

वर्णिक स्वरूप की गुरु छंदाओं में रचना सपाट होती है क्योंकि उनमें गुरु वर्ण सदैव दीर्घ रहता है। इसे शास्वत दीर्घ के रूप में नहीं तोड़ा जा सकता। मात्रिक स्वरूप में इन पर रचना बहुत ही लोचदार और लययुक्त होती है। हिंदी मात्रिक छंदों की संरचना समकल पर आधारित है जिनमें कल संयोजन पर बल दिया जाता है न कि लघु गुरु के क्रम पर। छठे पाठ में समकलों की विस्तृत व्याख्या की गई है जो कि मात्रिक गुरु छंदाओं का आधार है। मात्रिक स्वरूप में रचना करते समय चौकल, अठकल और छक्कल का कल संयोजन आवश्यक है न कि लघु और दीर्घ कहाँ और कैसे गिर रहे हैं। वाचिक स्वरूप में शास्वत दीर्घ यानी एक शब्द में साथ साथ आये दो लघु को गुरु वर्ण माना जाता है।

गुरु छंदाओं के संदर्भ में वाचिक में हम गुरु वर्ण को दो लघु में तोड़ सकते हैं जो एक शब्द में भी हो सकते हैं अथवा दो शब्द में भी पर इनमें मात्रा पतन के नियम सामान्य नियम से भिन्न हैं। वैसे तो गुरु छंदाओं में मात्रा पतन मान्य नहीं है, पर यदि 'उगाल' वर्ण (21) के पश्चात एक अक्षरी गुरु शब्द जैसे का, की, है, में, मैं, वे आदि हैं तो उन्हें लघु के रूप में लिया जा सकता है। जैसे 'राम की माया राम ही जाने' में 'की' 'ही' को लघु उच्चरित करते हुए 2222*2 माना जा सकता है। एक अक्षरी संयुक्ताक्षर शब्द जैसे क्या, क्यों की मात्रा नहीं गिराई जा सकती। 

एक मीबम छंदा (2222*3  222) का मेरा द्विपदी मुक्ता देखें जिसमें कई स्थान पर मात्रा पतन है पर लय भटकी हुई नहीं है। 

"उसके हुस्न की' आग में' जलते दिल को चैन की' साँस मिले,
होश को' खो के जोश में' जब भी वह आगोश में' आए तो।"

मीबम में तीन अठकल और एक छक्कल है। ऐसा मात्रा पतन अठकल या छक्कल में एक बार ही होना चाहिए।

अब हम गुरु छंदाओं की संरचना करते हैं। गुरु छंदाओं में अठकल (2222) को आधार माना गया है इसलिए छंदाओं का नामकरण उसी के अनुसार है। साथ ही छक्कल आधारित छंदाएँ भी हैं।

(1) 2222 = मीका, मीकण (अखण्ड छंद), मीकव (तिन्ना छंद)
22221 = मींका, मींकण, मींकव

(2) 2222 2 = मीगा, मीगण, मीगव (सम्मोहा छंद)
2222 21 = मीगू, मीगुण, मीगुव

(3) 2222 22 = मीगी, मीगिण, मीगिव (विद्युल्लेखा,शेषराज छंद)
2222  22 +1 = मीगिल, मीगीलण, मीगीलव

(4) 2222  222 = मीमा, मीमण (मानव छंद),
मीमव (शीर्षा/शिष्या छंद)
2222  2221 = मीमल, मीमालण, मीमालव

(5) 2222*2 = मीदा, मीदण, मीदव
2222, 2222 = मीधव (विद्युन्माला छंद)
2222*2 + 1= मीदल, मीदालण, मीदालव

(6) 2222*2  2 = मीदग, मीदागण, मीदागव
2222*2  21 = मिदगू, मीदागुण (तमाल छंद), मीदागुव
2222 2, 2222 2 = मीगध, मीगाधण, मीगाधव
2222 2, 2222 2 +1 = मीगाधल, मीगधलण, मीगधलव
2222 21, 2222 21  = मीगुध, मीगूधण, मीगूधव

(7) 2222*2  22 = मिदगी, मीदागिण, मीदागिव (शोभावती छंद)
2222*2  22 +1 = मीदागिल, मिदगीलण, मिदगीलव

(8) 2222*2  222 = मीदम, मीदामण, मीदामव
2222*2  2221 = मीदामल, मीदमलण, मीदमलव

(9) 2222*3 = मीबा, मीबण, मीबव
 2222*3 + 1 = मीबल, मीबालण, मीबालव
2222 22, 2222 22 = मीगिध, मीगीधण, मीगीधव
2222 22, 2222 22 +1 = मीगीधल, मीगिधलण, मीगिधलव
2222 22+1, 2222 22+1 = मीगींधा, मीगींधण, मीगींधव

(10) 2222*3  2 = मीबग, मीबागण, मीबागव
2222*3 21 = मिबगू, मीबागुण, मीबागुव

(11) 2222*3  22 = मिबगी, मीबागिण, मीबागिव
2222*3  22 +1 = मीबागिल, मिबगीलण, मिबगीलव
2222  222, 2222  222 = मीमध, मीमाधण, मीमाधव
2222  222, 2222  222 +1 = मीमाधल, मीमधलण, मीमधलव
2222  2221, 2222  2221 = मीमंधा, मीमंधण, मीमंधव

(12) 2222*3  222 = मीबम, मीबामण, मीबामव
2222*3  2221 = मीबामल, मीबमलण, मीबमलव
2222*2, 2222 222 = मीदंमिम, मीदंमीमण, मीदंमीमव (सारंगी छंद)
(दं संकेतक ईमग गुच्छक को द्विगुणित भी कर रहा है तथा वहाँ पर यति भी दर्शा रहा है।)

(13) 2222*4 = मीचा, मीचण, मीचव
2222*4 + 1= मीचल, मीचालण, मीचालव
2222*2, 2222*2  = मीदध, मीदाधण, मीदाधव
2222*2, 2222*2 + 1 = मीदाधल, मीदधलण, मीदधलव
2222*2 + 1, 2222*2 + 1 = मीदालध, मीदलधण, मीदलधव
***

केवल छक्कल आधारित छंदाएँ:-

222*2 = मादा, मादण, मादव

2221*2 = मंदा, मंदण (सुलक्षण छंद), मंदव

2221, 2221 =  मंधव  = (वापी छंद)

222*3 = माबा, माबण, माबव

222*4 = माचा, माचण, माचव
222*2, 222*2  = मादध, मदधण, मदधव (विद्याधारी छंद)
222*2 + 1, 222*2 + 1 = मदलध, मादलधण, मादलधव
***

उपरोक्त छंदाओं की मात्रा बाँट के विषय में प्रमुखता इस बात की है कि 4 से विभाजित छंदाओं की मात्रा जैसे 2*4, 2*6, 2*10, 2*14 आदि में चौकल अठकल का कोई भी संभावित क्रम लिया जा सकता है। 4 से विभाजन के बाद यदि 2 शेष बचता है तो यह छंदाओं के अंत में ही आयेगा, मध्य में नहीं। एक मीदामण (2222*2  222) छंदा की मात्रा बाँट ध्यान पूर्वक देखें -

8*2 + 4 + 2; 
8 + 4*3 + 2;
4 + 8*2 + 2;
4 + 8 + 4*2 + 2;
4*2 + 8 + 4 + 2;
4*3 + 8 + 2;
4*5 + 2;

इस छंदा की 7 संभावित मात्रा बाँट है और रचना के किसी भी पद में कोई सी भी एक बाँट प्रयुक्त की जा सकती है।

(विशेष:- चतुर्थ पाठ में बताये गये संख्यावाचक संकेतकों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें और देखें कि इन छंदाओं में उन संकेतक का किस प्रकार प्रयोग किया गया है।)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

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