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आतंकवाद
गोली या निर्लज्जता?
फर्क नहीं पड़ता।
करे छलनी
ये एकबार तन
वो रह रह मन।
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पर्यावरण
चाहे हर जगह
लगे वृक्ष ही वृक्ष।
विकास चाहे
कंक्रीट के जंगल
कट कट के वृक्ष।
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अमोल नेत्र
जो मरने के बाद
यूँ ही जल जाएंगे।
कर दो दान
किसीको रोशनी दे
खुशियाँ सजाएंगे।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-04-16
सुन्दर
ReplyDeleteआपका आभार।
Deleteआपका आभार।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteआपका हार्दिक धन्यवाद।
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