Friday, November 10, 2023

छंदा सागर "कवित्त छंदाएँ विभेद"

                       पाठ - 21


छंदा सागर ग्रन्थ


"कवित्त छंदाएँ विभेद"


(1) मनहरण घनाक्षरी:- "छूचणछुबफग" 

कुल वर्ण संख्या = 31। यहाँ समशब्द आधारित सरलतम छंदा दी गयी है। पिछले पाठ में छू यानी 4 वर्ण के खण्ड के और भी दो रूप बताये गये हैं जिनके प्रयोग से अनेक प्रकार की विविधता लायी जा सकती है। पदान्त हमेशा गुरु ही रहता है।
छूचण = 4×4 (16 वर्ण और यति सूचक ण)
छुब = 4×3
फग = कोई भी दो वर्ण और अंत में दीर्घ।
यति 8-8 वर्ण पर भी "छूदथछूफग" के रूप में रखी जा सकती है।

(2) जनहरण घनाक्षरी:- "नंचणनंबस"

नंचण का अर्थ- नगण के संकेतक में अनुस्वार से 1111 रूप बना। अतः नंचण का अर्थ हुआ 1111*4, 
नंबस- 1111*3 तथा अंत में सगण(112)।
जनहरण कुल 31 वर्ण की घनाक्षरी है जिसके प्रथम 30 वर्ण लघु तथा अंतिम वर्ण दीर्घ। यति 8-8 वर्ण पर 'नंदथनंसा' के रूप में भी रखी जा सकती है।
इसकी रचना में कल संयोजन बहुत महत्वपूर्ण है। 8 वर्ण की यति या तो समवर्ण शब्द पर रखें जिसमें केवल 4 या 2 वर्ण के शब्द होंगे। या फिर 3-3-2 के 3 शब्द रखें। 3-3-2 के प्रथम 3 को 2-1 के दो शब्दों में तोड़ सकते हैं जबकि बाद वाले 3 को 1-2 वर्ण के दो शब्दों में तोड़ सकते हैं।

(3) रूप घनाक्षरी:- "छूचणछूबफगू"

फगू का अर्थ कोई भी दो वर्ण तथा उगाल वर्ण (21)। यह 32 वर्ण की घनाक्षरी है। यहाँ समवर्ण आधारित सरल छंदा दी गयी है। इस घनाक्षरी के प्रथम 28 वर्ण ठीक मनहरण घनाक्षरी वाले हैं जो पूर्व पाठ में विस्तार से बताये गये हैं। उन्हीं के आधार पर छूचणछूबा के विभिन्न रूप लिये जा सकते हैं। यति 8-8 वर्ण पर भी "छूदथछुफगू" के रूप में रखी जा सकती है।

(4) जलहरण घनाक्षरी:- "छूचणछूबफलू'

यह भी 32 वर्ण की घनाक्षरी है तथा इस में और रूप घनाक्षरी में केवल अंतिम दो वर्ण का अंतर है। रूप के अंत में उगाल वर्ण (21) है तथा जलहरण के अंत में ऊलल वर्ण (11) है। बाकी 30 वर्ण छूचणछूबफ के रूप में एक समान हैं। इसमें भी यति 8-8 वर्ण पर "छूदथछुफलू" के रूप में रखी जा सकती है।

(5) मदन घनाक्षरी:- "छूचणछूबफगी"

यह भी 32 वर्ण की घनाक्षरी है तथा इस में भी केवल अंतिम दो वर्ण का ही अंतर है। रूप के अंत में उगाल (21) है, जलहरण के अंत में ऊलल (11) तथा मदन में इगागा (22) है। बाकी सब समान हैं। यति 8-8 वर्ण पर "छूदथछुफगी" के रूप में भी रखी जा सकती है।

(6) डमरू घनाक्षरी:- "ठींदध"

'ठीं' का अर्थ है मात्रा रहित 8 वर्ण। इन में संयुक्ताक्षर वर्जित हैं। 'ठी' संकेतक मात्रा रहित 8 वर्ण का है जिसमें संयुक्ताक्षर मान्य हैं। परंतु 'ठीं का अर्थ मात्रा रहित 8 वर्ण का समूह जिसमें संयुक्ताक्षर भी मान्य नहीं हैं। 'द' इस ठीं संकेतक को द्विगुणित कर रहा है तथा अंत में 'ध' इसे दोहराकर दो यति में विभक्त कर रहा है। 

यह घनाक्षरी चार यति में बहुत रोचक होती है जिसकी छंदा "ठींचौ" है। मात्रिक छंदाओं में हम दौ, तौ आदि संकेतक से परिचित हुए थे। इस प्रकार डमरू घनाक्षरी में 32 मात्रा रहित वर्ण होते हैं। यति या तो समवर्ण शब्द पर रखें जिसमें केवल 4 या 2 वर्ण के शब्द होंगे। या फिर 3-3-2 के 3 शब्द रखें। 3-3-2 के प्रथम 3 को 2-1 के दो शब्दों में तोड़ सकते हैं जबकि बाद वाले 3 को 1-2 वर्ण के दो शब्दों में तोड़ सकते हैं।

(7) कृपाण घनाक्षरी:- "छूदथछुफगू सर्वानुप्रासी"

कुल वर्ण संख्या 32; 8, 8, 8, 8 पर यति अनिवार्य।  पहले की 6 घनाक्षरियों की छंदाऐँ दो यति की दी गयी थी परन्तु इसकी 4 यति की दी गयी है जो कि अनिवार्य है। 'फगू' का अर्थ कोई भी दो वर्ण तथा उगाल वर्ण (21)। साथ ही इसकी छंदा में सर्वानुप्रासी शब्द जोड़ा गया है। इसके एक पद में 4 यति होती है और कृपाण घनाक्षरी में चारों समतुकांत होनी चाहिए। घनाक्षरी में कुल चार समतुकांत पद होते हैं और इस प्रकार कृपाण घनाक्षरी की 4*4 = 16 यति समतुकांत रहनी चाहिए।

(8) विजया घनाक्षरी:- "छूदथछुफली सानुप्रासी" तथा  "छूदथछूखन सानुप्रासी"

कुल वर्ण संख्या 32; 8, 8, 8, 8 पर यति अनिवार्य। पदान्त में सदैव इलगा वर्ण (12) अथवा नगण (111) आवश्यक। पदांत इलगा (12) की छंदा का नाम "छूदथछुफली" और अंत में यदि नगण है तो "छूदथछूखन" नाम है। इसकी छंदा में सानुप्रासी शब्द जोड़ा गया है जिसका अर्थ आंतरिक तीनों यतियाँ भी समतुकांत होनी चाहिए। आंतरिक यतियाँ भी पदान्त यति (12) या (111) के अनुरूप रखें तो उत्तम।

(9) हरिहरण घनाक्षरी:- "छूदथछुफलू सानुप्रासी"

कुल वर्ण संख्या 32 । 8, 8, 8, 8 पर यति अनिवार्य। पदान्त में सदैव ऊलल वर्ण (11) आवश्यक। पद की प्रथम तीन यति भी समतुकांत होनी चाहिए।

(10) देव घनाक्षरी:- "छूदथछूफन" - 
कुल वर्ण = 33। 8, 8, 8, 9 पर यति अनिवार्य।
पदान्त में सदैव 3 लघु (111) आवश्यक। यह पदान्त भी पुनरावृत रूप में जैसे 'चलत चलत' रहे तो उत्तम।

(11) सूर घनाक्षरी:- "छूदथछुफ" - यह 30 वर्ण की घनाक्षरी है। 8, 8, 8, 6 पर यति अनिवार्य।
पदान्त की कोई बाध्यता नहीं, कुछ भी रख सकते हैं।

जनहरण और डमरू को छोड़ हर घनाक्षरी के प्रथम 28 वर्ण "छूदथछू" अथवा "छूचणछूबा" के रूप में समान हैं। इसके पिछले पाठ में इन 28 वर्ण की लगभग सभी संभावनाओं पर विचार किया गया है। उन विविध रूपों का इन घनाक्षरियों में भी प्रयोग कर रचना में अनेक प्रकार की विविधता लायी जा सकती है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
3-12-19

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