पाठ - 22
छंदा सागर ग्रन्थ
"सवैया छंदाए"
हिंदी के रीतिकालीन, भक्तिकालीन युग से ही सवैया बहुत ही प्रचलित छंद रहा है। सवैया वर्णिक छंद है जिसमें वर्णों की संख्या सुनिश्चित रहती है। अतः दो लघु के स्थान पर गुरु वर्ण तथा गुरु वर्ण के स्थान पर दो लघु नहीं आ सकते। प्राचीन कवियों की रचनाओं का अवलोकन करने से पता चलता है कि सवैया में सहायक क्रियाओं (है, था, थी आदि) तथा विभक्ति (का, में, से आदि) की मात्रा गिराना सामान्य बात थी।
सवैया में यति का कोई रूढ़ नियम नहीं है। सवैया में 22 से 26 वर्ण तक होते हैं और एक सांस में इतने लंबे पद का उच्चारण संभव नहीं होता अतः 10 से 14 वर्ण के मध्य जहाँ भी शब्द समाप्त होता है स्वयंमेव यति हो जाती है। इसलिए यति-युक्त छंदाएँ न दे कर सीधी छंदाएँ दी गयी हैं। 24 वर्णी सवैयों में 12 वर्ण पर यति के साथ की छंदा भी दी गयी है तथा सीधी छंदा भी दी गयी है, यह रचनाकार पर निर्भर है कि किस छंदा में रचना कर रहा है।
सवैया में एक ही गण की कई आवृत्ति रहती है तथा अंत में कुछ वर्ण या अन्य गुच्छक रहता है। सात की संख्या के लिए 'ड' वर्ण तथा आठ की संख्या के लिए 'ठ' वर्ण प्रयुक्त होता है जिसका परिचय संकेतक के पाठ में कराया गया था। ये वर्ण अ, आ, की मात्रा के साथ प्रयुक्त होते हैं। सवैयों की छंदाएँ ण व स्वरूप संकेतक के बिना ही दी जा रही हैं। अब यह रचनाकार पर निर्भर है कि वह विशुद्ध वर्णिक स्वरूप में रचना कर रहा है या मान्य मात्रा पतन के आधार पर।
'भगण' (211) आश्रित सवैये:-
211*7 +2 = भाडग (मदिरा सवैया)
211*7 +22 = भडगी (मत्तगयंद सवैया)
211*7 +21 = भडगू (चकोर सवैया)
211*7 212 = भाडर (अरसात सवैया)
211*8 = भाठा (किरीट सवैया)
211*4, 211*4 = भाचध (किरीट, 12 वर्ण पर यति)
211*4 21122*2 = भचभेदा (मोद सवैया)
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'जगण' (121) आश्रित सवैये:-
121*7 +12 = जडली (सुमुखी सवैया)
121*7 122 = जाडय (बाम सवैया)
121*8 = जाठा (मुक्ताहरा सवैया)
121*4, 121*4 = जाचध (मुक्ताहरा सवैया यति-युक्त)
121*8 +1 = जाठल (लवंगलता सवैया)
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'सगण' (112) आश्रित सवैये:-
112*8 = साठा (दुर्मिला सवैया)
112*4, 112*4 = साचध (दुर्मिला यति-युक्त)
112*8 +2 = साठग (सुंदरी सवैया)
112*8 +1 = साठल (अरविंद सवैया)
112*8 +11 = सठलू (सुखी सवैया)
112*8 +12 = सठली (पितामह सवैया)
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'यगण' (122) आश्रित सवैये:-
122*8 = याठा (भुजंग सवैया)
122*4, 122*4 = याचध (भुजंग सवैया यति-युक्त)
122*7 +12 = यडली (वागीश्वरी सवैया)
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'रगण' (212) आश्रित सवैये:-
212*8 = राठा (गंगोदक सवैया)
212*4, 212*4 = राचध (गंगोदक सवैया यति-युक्त)
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'तगण' (221) आश्रित सवैये:-
221*7 +2 = ताडग (मंदारमाला सवैया)
221*7 +22 = तडगी (सर्वगामी सवैया)
221*8 = ताठा (आभार सवैया)
221*4, 221*4 = ताचध (आभार सवैया यति-युक्त)
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ऊपर मगण और नगण को छोड़ बाकी छह गण पर आश्रित सभी प्रचलित सवैयों की छंदाएँ दी गयी हैं। भगण की सात या आठ आवृत्ति के पश्चात वर्ण संयोजन से प्राप्त सवैयों की संभावित छंदाएँ देखें-
सात आवृत्ति के पश्चात छह वर्ण के संयोजन से प्राप्त सवैये- भाडल, भाडग, भडगी, भडली, भडगू,भडलू।
आठ आवृत्ति के तथा छह वर्ण के संयोजन से प्राप्त - भाठा, भाठल, भाठग, भठगी, भठली, भठगू,भठलू।
चार आवृत्ति तथा अंतिम दो आवृत्ति में युग्म वर्ण के संयोजन से प्राप्त चार सवैये - भचभेदा, भचभूदा, भचभींदा, भचभोदा।
इस प्रकार मगण नगण को छोड़ छहों गण के 17 - 17 सवैये बन सकते हैं।
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वर्ण-संयोजित सवैये:-
इसी पाठ के अंतर्गत विभिन्न गण आधारित वर्ण-संयोजित सवैयों की छंदाएँ सम्मिलित की गयी हैं जिनमें एक ही गण की आवृत्ति के मध्य विभिन्न वर्ण का संयोजन है। इन सवैया छंदाओं में भी एक ही गण की 6 आवृत्ति है तथा 22 से 26 वर्ण हैं। कुल वर्ण 6 हैं जिनसे द्वितीय पाठ में हमारा परिचय हो चुका है। इन छंदाओं में इन छहों वर्णों का संयोजन देखने को मिलेगा। ऊपर सवैयों में विभिन्न गणों की सात या आठ आवृत्ति के अंत में इन्हीं वर्ण का संयोजन है पर इन वर्ण संयोजित सवैयों में इन वर्णों का गणों के मध्य में भी संयोजन है और अंत में भी।
मगण और नगण में केवल एक ही वर्ण दीर्घ या लघु रहता हैं। एक ही वर्ण की आवृत्ति से सवैये की विशेष लय नहीं आती है। सवैया चार पद की समतुकांत छंद है। यहाँ हम भगण को आधार बना कर छंदाएँ दे रहे हैं इसी आधार पर तगण, रगण, यगण, जगण और सगण में भी छंदाएँ बनेंगी।
211*3 +22 211*3 +22 = भबगीधू
(इस छंदा में तीन आवृत्ति के पश्चात इगागा वर्ण के संयोजन के दो खंड हैं। चारों युग्म वर्ण के दोनों स्थानों पर हेरफेर से इस छंदा के 4*4 कुल 16 रूप बनेंगे।
भबगीधू, भबगीभबली, भबगीभबगू, भबगीभबलू
भबलीधू, भबलीभबगी, भबलीभबगू, भबलीभबलू
भबगूधू, भबगूभबगी, भबगूभबली, भबगूभबलू
भबलूधू, भबलूभबगी, भबलूभबली, भबलूभबगू
इन छंदाओं की मध्य यति की छंदाएँ-
भबगिध, भबगिणभबली, भबगिणभबगू, भबगिणभबलू आदि।
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(211*2 +22)*3 22 = भदगीथूगी
(इस छंदा में दो स्थान पर वर्ण संयोजन है और दोनों स्थान पर छहों वर्ण जुड़ सकते हैं। इस छंदा के कुल 36 रूप बनेंगे।
भादलथुल, भादलथुग, भादलथूली, भादलथूगी, भादलथूलू, भादलथूगू।
इसी प्रकार ये छहों छंदाएँ भादग, भदगी, भदली, भदगू तथा भदलू के साथ बनेंगी।
चार युग्म वर्ण संयोजन की बिना अंतिम वर्ण संयोजित किये भी छंदाएँ बनेंगी।
भदगीथू, भदलीथू, भदगूथू, भदलूथू
इस प्रकार इस मेल से 40 वर्ण-संयोजित सवैयों की छंदाएँ बनेंगी।
इन छंदाओं में थू के स्थान पर थ के प्रयोग से त्रियति छंदाएँ बन सकती हैं। जैसे -
211*2 +2, 211*2 +2, 211 2112 22 = भदगथगी (इस छंदा में भादग की यति सहित तीन आवृत्ति के पश्चात गी स्वतंत्र रूप से जुड़ा हुआ है। ऐसा अंत का वर्ण संयोजन अंतिम यति का ही हिस्सा माना जाता है। यही यदि वर्ण के स्थान पर कोई गुच्छक होता तो उसकी स्वतंत्र यति होती। जैसे भादगथर में भादग की तीन यति के पश्चात अंत के रगण की स्वतंत्र यति है।)
इस प्रकार वर्ण-संयोजित सवैयों की श्रेणी में छहों गण की 56 - 56 छंदा संभव है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
30-12-19
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