Monday, January 15, 2024

"भारत गौरव"

जय भारत जय पावनि गंगे,
जय गिरिराज हिमालय ;
आज विश्व के श्रवणों में,
गूँजे तेरी पावन लय ।
नमो नमो हे जगद्गुरु,
तेरी इस पुण्य धरा को ;
गुंजित करना ही सुझे,
तेरा यश इन अधरों को ।।1।।

उत्तर में नगराज हिमालय,
तेरा शीश सजाए;
दक्षिण में पावन रत्नाकर,
तेरे चरण धुलाए ।
खेतों की हरियाली तुझको,
हरित वस्त्र पहनाए ;
सरिता और शैल उस में,
मनभावन सुमन सजाए ।।2।।

गंगा यमुना और कावेरी,
की शोभा है निराली;
अपनी पावन जलधारा से,
खेतों में डाले हरियाली ।
तेरी प्यारी भूमि की,
शोभा है बड़ी निराली;
कहीं पहाड़ है कहीं नदी है,
कहीं बालू सोनाली ।।3।।

तुने अपनी ज्ञान रश्मि से,
जग में आलोक फैलाया;
अपनी धर्म भेरी के स्वर से,
तुने जग को गूँजाया ।
तेरे ऋषि मुनियों ने,
जग को उपदेश दिया था;
योग साधना से अपनी,
जग का कल्याण किया था ।।4।।

अनगिनत महाजन जन्मे,
तेरी पावन वसुधा पर;
शरणागतवत्सल वे थे,
अरु थे पर दुख कातर ।
दानशीलता से अपनी,
इनने तुमको चमकाया;
तेरे मस्तक को उनने,
अपनी कृतियों से सजाया ।।5।।

तेरी पुण्य धरा पर,
जन्मे राम कृष्ण अवतारी;
पा कर के उन रत्नों को,
थी धन्य हुई महतारी ।
अनगिनत दैत्य रिपु मारे,
धर्म के कारण जिनने;
ऋषि मुनियों के कष्टों को,
दूर किया था उनने ।।6।।

अशोक बुद्ध से जन्मे,
मानवता के सहायक;
जन जन के थे सहचर,
धर्म भेरी के निनादक ।
राणा शिवा से आए,
हिंदुत्व के वे पालक;
मर मिटे जन्म भूमि पे,
वे देश के सहायक ।।7।।

थे स्वतन्त्रता के चेरे,
भगत सुभाष ओ' गांधी;
अस्थिर न कर सकी थी,
उनको विदेशी आँधी ।
साहस के थे पुतले,
अरु धैर्य के थे सहचर;
सितारे बन के चमके,
वे स्वतन्त्रता के नभ पर ।।8।।

मातृ भूमि की रक्षा का,
है पावन कर्त्तव्य हमारा;
निर्धन दीन निसहाय,
जनों के बनें सहारा ।
नंगों को दें वस्त्र,
और भूखों को दें भोजन;
दुखियों के कष्टों का,
हम सब करें विमोचन।।9।।

ऊँच नीच की पूरी हम,
मन से त्यजें भावना;
रंग एक में रंग जाने की,
हम सब करें कामना ।
भारत के युवकों का,
हो यह पावन कर्म;
देश हमारा उच्च रहे,
उच्च रहे हमारा धर्म ।।10।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

(यह मेरी प्रथम कविता थी जो दशम कक्षा में 02-04-1970 को लिखी थी)

No comments:

Post a Comment