हृदय में एकता धारे।
सजग होके रहें सारे।।
रखें ये देश ऊँचा हम।
यहाँ जो व्याप्त हर लें तम।।
प्रखर विद्रोह के हैं स्वर।
लगें भीषण हमें ये ज्वर।।
विरोधी के सभी उत्तर।
मिले बरसा यहाँ पत्थर।।
प्रबल अलगाववादी हैं।
कलह के नित्य आदी हैं।।
इन्हें चिंता न भारत की।
करें बातें शरारत की।।
विषमतायें यहाँ भारी।
मगर हिम्मत न हम हारी।।
हतोत्साहित न हों थोड़ा।
हटायें राह के रोड़ा।।
मनोबल को रखें उन्नत।
सदा जिनसे हुयें आहत।।
करें उनका पराक्रम क्षय।
मिलेगी जीत बिन संशय।।
उदंडी दंड को पायें।
धरा का न्याय अपनायें।।
रहे मन में न अब दूरी ।
'नमन' यह चाह हो पूरी।।
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विजात छंद विधान -
विजात छंद 14 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है। यह मानव जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। यह एक मापनी आधारित छंद है। इन 14 मात्राओं की मात्रा बाँट:- 1222 1222 है। चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 करने की छूट है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
07-06-22
वाह
ReplyDeleteआपका आत्मिक आभार।
Deleteअच्छा ब्लॉग है...कविता का व्याकरण अब समझ में आज जाएगा हमारे...धन्यवाद नमन जी
ReplyDeleteआपका स्वागत है। काव्य पर इस ब्लॉग में बहुत कुछ मिलेगा।
Deleteवाह! बहुत खूब!
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार।
Deleteप्रबल अलगाववादी हैं , कलह के नित्य आदी हैं ..वाह
ReplyDeleteआपका हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ।
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब ।
आपका बहुत बहुत आभार।
Deleteबहुत अच्छी रचना के साथ विजात छंद की जानकारी भी मिली। सादर आभार।
ReplyDeleteआपका आत्मिक आभार।
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