Friday, March 22, 2024

"प्रातः वर्णन"

उदित हुआ प्रभाकर प्रखर प्रताप लेके,
समस्त जग को सन्देश स्फूर्ति का देके।
रक्त वर्ण रम्य रश्मियाँ लेके आया,
प्राची दिशि को अरुणिमा से सजाया।।1।।

पद्म खण्ड सुंदर सरोवरों में उपजे,
तुषार बिंदुओं से प्रसस्त पल्लव सजे।
विहग समूह भी आनन्द में समाया,
मधुर कलरव से दिग दिगन्त गूँजाया।।2।।

हर्ष में खिले हैं विभिन्न पशु पक्षी गण,
क्रियाकलाप में लगा सबका ही जीवन।
हर्षोन्माद छाया चहुँ दिशि ओ गगन में, 
उठी उमंग की लहर जनमानस मन में।।3।।

प्रातः शोभा में जग उद्यान लहराया,
दिशाओं में आलोक आवरण छाया।
घोर अंधकार अभी जहां संसार में था,
नीरवता का शासन पूर्ण प्रसार में था।।4।।

कहाँ छिपा रखा था तिमिर वधु निशा ने,
रखा दूर शोभा को कौनसी दिशा ने।
कहाँ से है आयी सुबह की ये शोभा,
कहाँ छिपी थी यह अरुणिमा मन लोभा।।5।।

जीविका के कारण जाना था जिनको बाहर,
जाने लगे वे सजधज गृह को त्यज कर।
रत हुई गृहणियाँ गृह कार्यों में नाना,
आलस्य त्यज नव स्फूर्ति का पहना बाना।।6।।

जलाशय कूपों पर जन समूह छाया,
स्नान पेय हेतु जल उनको भाया।
गो पालक भी अब अकाज न दिखते,
गो दुहन की तैयारी अब वे करते।।7।।

भगवत आलयों में घण्टा घोष छाया,
वातावरण को आरतियों से गूँजाया।
जीवन्त हो उठे हैं विद्यालयों के प्रांगण,
फैलाते प्रार्थनाओं की छात्र नभ में गूँजन।।8।।

कृषक समुदाय भी कुछ खा पी कर,
चल पड़े खेतों में हल बैल ले कर।
सींच रहे मालीगण वाटिकाओं को,
दाना डाल रहे कुछ कपोत सारिकाओं को।।9।।

खिलने लगे मन्जुल कमल सरोवरों में,
आनन्द तरंग उठने लगी चकोरों में।
सुबह के ही कारण यह हर्षोल्लास छाया,
कार्य सागर में अब जग जा समाया।।10।।

नव जागृति का है यह सुंदर सवेरा,
नाना कार्यों की चाह ने जग जन को घेरा।
'नमन' इसे सब कार्य प्रारम्भ इस में होते,
जो इसमें सोते अपना सर्वस्व खोते।।11।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
(1970 की लिखी कविता)

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