दोहा छंद
सोम बिराजे शीश पे, प्रभु गौरा के कंत।
राज करे कैलाश पर, महिमा दिव्य अनंत।।
काशी के प्रभु छत्र हैं, औघड़ दानी आप।
कष्ट निवारण कर सकल, हरिये कलिमय पाप।।
काशी पावन धाम में, जो जन त्यागें प्राण।
सद्गति पाते जीव वे, होता भव से त्राण।।
त्रिपुरारी सब कष्ट को, दूर करो प्रभु आप।
कृपा-दृष्टि जिस पर पड़े, मिटते भव संताप।।
जो जग का हित साधने, करे गरल का पान।
शिव समान इस विश्व में, उसका होता मान।।
चमके मस्तक चन्द्रमा, सजे कण्ठ पर सर्प।
नन्दीश्वर तुमको 'नमन', दूर करो सब दर्प।
विश्वनाथ को कर 'नमन', दोहे रचे अनूप।
हे प्रभु वन्दन आपको, भर दीज्यो रस रूप।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
30-04-19
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