दोहा छंद
(मानस विविध प्रसंग)
तार अहिल्या राम ने, किया बहुत उपकार।
शरणागतवत्सल हरी, जग में जय जय कार।।
मुनि वशिष्ठ सर नाय के, किये राम प्रस्थान।
संग लखन अरु जानकी, अद्भुत रघुकुल आन।।
भरत अनुज सह वन रहें, अवध चलें रघुराय।
राजतिलक हो राम का, कहि वशिष्ठ समुझाय।।
परखें जग इन चार सिय, आपद जब सिर आय।
दार मित्र धीरज धरम, कह अनुसुइया माय।।
परखन महिमा राम की, सुरपति तनय जयंत।
मार चोंच सिय-पद मृदुल, बीन्धा अधम असंत।।
अभिमंत्रित कर सींक सर, छोड़े श्री रघुराय।
लक्ष्य अधम सुरपति तनय, काना दिया बनाय।।
पाय रजायसु राम की, लखन चले तत्काल।
इंद्रजीत का वध करन, बन कर काल कराल।।
केवट की ये कामना, हरि-पद करूं पखार।
बोला धुलवाएँ चरण, फिर उतरें प्रभु पार।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
20-02-17
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