लज्जा मंगलसूत्र सी, सदा धार के राख।
लाज गई तो नहिँ बचे, यश, विवेक अरु साख।
यश, विवेक अरु साख, उचित, अनुचित नहिँ जाने।
मद में हो नर चूर, जरा संकोच न माने।
कहे 'बासु' कविराय, करो जितनी भी सज्जा।
सब कुछ है बेकार, नहीं जब मन में लज्जा।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
21-10-2016
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