परंपराएँ निभा रहे हैं,
स्वयं में रम दिन बिता रहे हैं,
परंतु घर के कुछेक दुश्मन,
चमन ये प्यारा जला रहे हैं।
(12122*2)
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आपके पास हैं दोस्त ऐसे, कहें,
साथ जग छोड़ दे, संग वे ही रहें।
दोस्त ऐसे हों जो बाँट लें दर्द सब,
आपके संग दिल की जो पीड़ा सहें।
(212*4)
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यारो बिस्तर और नश्तर एक जैसे हो गये,
अब तो घर क्या और दफ्तर एक जैसे हो गये,
मायके जब से गयी है रूठ घरवाली मेरी,
तब से नौकर और शौहर एक जैसे हो गये।
(2122*3 212)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-09-20
आपके पास हैं दोस्त ऐसे, कहें,
ReplyDeleteसाथ जग छोड़ दे, संग वे ही रहें।
दोस्त ऐसे हों जो बाँट लें दर्द सब,
आपके संग दिल की जो पीड़ा सहें।
बहुत खूब!