मेरे तो हैं बस राम एक स्वामी।
अंतर्यामी करतार पूर्णकामी।।
भक्तों के वत्सल राम चन्द्र न्यारे।
दासों के हैं प्रभु एक ही सहारे।।
माया से आप अतीत शोक हारी।
हाथों में दिव्य प्रचंड चाप धारी।
संधानो तो खलु घोर दैत्य मारो।
बाढ़े भू पे जब पाप आप तारो।।
पित्राज्ञा से वनवास में सिधाये।
सीता सौमित्र तुम्हार संग आये।।
किष्किन्धा में हनु सा सुवीर पाई।
लंका पे सागर बाँध की चढ़ाई।।
संहारे रावण को कुटुंब साथा।
गाऊँ सारी महिमा नवाय माथा।।
मेरे को तो प्रभु राम नित्य प्यारे।
वे ऐसे जो भव-भार से उबारे।।
सीता संगे रघुनाथ जी बिराजे।
तीनों भाई, हनुमान साथ साजे।।
शोभा कैसे दरबार की बताऊँ।
या के आगे सुर-लोक तुच्छ पाऊँ।।
ये ही शोभा मन को सदा लुभाये।
ये सारे ही नित 'बासुदेव' ध्याये।।
वो अज्ञानी चरणों पड़ा भिखारी।
आशा ले के बस भक्ति की तिहारी।।
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पुण्डरीक छंद विधान -
"माभाराया" गण से मिले दुलारी।
ये प्यारी छंदस 'पुण्डरीक' न्यारी।।
"माभाराया" = मगण भगण रगण यगण
(222 211 212 122)
12 वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छंद। 4 चरण, 2-2 चरण समतुकान्त।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
25-01-19
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