Friday, December 10, 2021

ग़ज़ल (पास बैठे तो हैं पर आँख)

बह्र: 2122 1122 1122  22

पास बैठे तो हैं पर आँख उठाते भी नहीं,
मुझसे क्या उन को शिकायत है बताते भी नहीं।

झूठे वादों से रिझा मुँह को छुपाते भी नहीं,
ढीट नेता ये बड़े भाग के जाते भी नहीं।

ख्वाब झूठे जो दिखा वोट बटोरे हम से,
ऐसे मक्कार कभी दिल में समाते भी नहीं।

रंग गिरगिट से बदलते हैं जो मतलब के लिए,
लोग जो दिल से खरे उनको वो भाते भी नहीं।

ज़ख्म गहरे जो मिले ज़ीस्त से, रह रह रिसते,
दर्द सहते हैं तो क्या! अश्क़ बहाते भी नहीं।

सामने रहके भी महबूब सितमगर मेरे,
पास आये न सही पास बुलाते भी नहीं।

एक चहरे पे चढ़ा लेते जो दूजा चहरा,
भेष रहबर का 'नमन' राह दिखाते भी नहीं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
24-08-18

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