Saturday, December 4, 2021

ग़ज़ल (मौत का कुछ तो इंतज़ाम करें)

बह्र:- 2122  1212  22

मौत का कुछ तो इंतज़ाम करें,
नेकियाँ थोड़ी अपने नाम करें।

कुछ सलीका दिखा मिलें पहले,
बात लोगों से फिर तमाम करें।

सर पे औलाद को न इतना चढ़ा,
खाना पीना तलक हराम करें।

दिल में सच्ची रखें मुहब्बत जो,
महफिलों में न इश्क़ आम करें।

वक़्त फिर लौट के न आये कभी,
चाहे जितना भी ताम झाम करें।

या खुदा सरफिरों से तू ही बचा,
रोज हड़तालें, चक्का जाम करें।

पाँच वर्षों तलक तो सुध ली नहीं,
कैसे अब उनको हम सलाम करें।

खा गये देश लूट नेताजी,
आप अब और कोई काम करें।

आज तक जो न कर सका था 'नमन',
काम वो उसके ये कलाम करें।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-11-2018

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