रूपमाला छंद / मदन छंद
राम की महिमा निराली, राख मन में ठान।
अन्य रस का स्वाद फीका, भक्ति रस की खान।
जागती यदि भक्ति मन में, कृपा बरसी जान।
नाम साँचो राम को है, लो हृदय में मान।।
राम को भज मन निरन्तर, भक्ति मन में राख।
इष्ट पे रख पूर्ण आश्रय, मत बढ़ाओ शाख।
शांत करके मन-भ्रमर को, एक का कर जाप।
राम-रस को घोल मन में, दूर हो सब ताप।।
नाम प्रभु का दिव्य औषधि, नित करो उपभोग।
दाह तन मन की हरे ये, काटती भव-रोग।।
सेतु सम है राम का जप, जग समुद्र विशाल।
आसरा इसका मिले तो, पार हो तत्काल।।
रत्न सा जो है प्रकाशित, राम का वो नाम।
जीभ पे इसको धरो अरु, देख इसका काम।।
ज्योति इसकी जगमगा दे, हृदय का हर छोर।
रात जो बाहर भयानक, करे उसकी भोर।।
गीध, शबरी और बाली, तार दीन्हे आप।
आप सुनते टेर उनकी, जो करें नित जाप।।
राम का जप नाम हर क्षण, पवनसुत हनुमान।
सकल जग के पूज्य हो कर, बने महिमावान।।
राम को जो छोड़ थामे, दूसरों का हाथ।
अंत आयेगा निकट जब, कौन देगा साथ।
नाम पे मन रख भरोसा, सब बनेंगे काज।
राम से बढ़कर जगत में, कौन दूजो आज।।
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रूपमाला छंद / मदन छंद विधान -
रूपमाला छंद जो कि मदन छंद के नाम से भी जाना जाता है, 24 मात्रा प्रति पद का सम-पद मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक पद में 14 और 10 के विश्राम से 24 मात्राएँ और पदान्त गुरु-लघु से होता है। यह चार पदों का छंद है, जिसमें दो-दो पदों पर तुकान्तता होती है।
इसकी मात्रा बाँट 3 सतकल और अंत ताल यानी गुरु लघु से होती है। इस छंद में सतकल की मात्रा बाँट 3 2 2 है जिसमें द्विकल के दोनों रूप (2, 11) और त्रिकल के तीनों रूप (2 1, 1 2, 111) मान्य है। अतः निम्न बाँट तय होती है:
3 2 2 3 2 2 = 14 मात्रा और
3 2 2 2 1 = 10 मात्रा
इस छंद को 2122 2122, 2122 21 के बंधन में बाँधना उचित नहीं। प्रसाद जी का कामायनी के वासना सर्ग का उदाहरण देखें।
स्पर्श करने लगी लज्जा, ललित कर्ण कपोल,
खिला पुलक कदंब सा था, भरा गदगद बोल।
किन्तु बोली क्या समर्पण, आज का हे देव!
बनेगा-चिर बंध नारी, हृदय हेतु सदैव।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
29-08-2016
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