Sunday, January 30, 2022

मुक्तक "टूलकिट"

(गीतिका छंद वाचिक)

टूलकिट से देश की छवि लोग धूमिल कर रहे,
शील भारत भूमि का बेशर्म हो ये हर रहे,
देशवासी इन सभी की असलियत पहचान लो,
पीढियों से देश को चर घर ये अपना भर रहे।

लोभ में सत्ता के कितने लोग अब गिरने लगे,
हो गये हैं टूलकिट के आज ये सारे सगे,
बाहरी की हैसियत क्या हम पे जो शासन करें,
लोग वे अपने ही जिन से हम रहे जाते ठगे।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
03-01-22

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