“26 जनवरी”
ग़ज़ल (वाचिक स्वरूप)
जनवरी के मास की छब्बीस तारिख आज है,
आज दिन भारत बना गणतन्त्र सबको नाज़ है।
ईशवीं उन्नीस सौ पच्चास की थी शुभ घड़ी,
तब से गूँजी देश में गणतन्त्र की आवाज़ है।
आज के दिन देश का लागू हुआ था संविधान,
है टिका जनतन्त्र इस पे ये हमारी लाज है।
सब रहें आज़ाद हो रोजी कमाएँ खुल यहाँ,
एक हक़ सब का यहाँ जो एकता का राज़ है।
राजपथ पर आज दिन जब फ़ौज़ की देखें झलक,
छातियाँ दुश्मन की दहले उसकी ऐसी गाज़ है।
संविधान_इस देश की अस्मत, सुरक्षा का कवच,
सब सुरक्षित देश में सर पे ये जब तक ताज है।
मान दें सम्मान दें गणतन्त्र को नित कर ‘नमन’,
ये रहे हरदम सुरक्षित ये सभी का काज है।
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गीतिका छंद विधान – (वाचिक स्वरूप) <– लिंक
गीतिका छंद 26 मात्रा प्रति पद का सम पद मात्रिक छंद है जो 14 – 12 मात्रा के दो यति खंडों में विभक्त रहता है। छंद चार चार पदों के खंड में रचा जाता है। छंद में 2-2 अथवा चारों पदों में समतुकांतता रखी जाती है।
संरचना के आधार पर गीतिका छंद निश्चित वर्ण विन्यास पर आधारित मापनी युक्त छंद है। जिसकी मापनी 2122*3 + 212 है। इसमें गुरु (2) को दो लघु (11) में तोड़ा जा सकता है जो सदैव एक ही शब्द में साथ साथ रहने चाहिए।
ग़ज़ल और गीतिकाओं में यह छंद वाचिक स्वरूप में अधिक प्रसिद्ध है जिसमें उच्चारण के आधार पर काफी लोच संभव है। वाचिक स्वरूप में यति के भी कोई रूढ नियम नहीं है और उच्चारण अनुसार गुरु वर्ण को लघु मानने की भी छूट है।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
जय गणतंत्र। बहुत सुंदर समसामयिक ग़ज़ल।
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