Saturday, January 8, 2022

ग़ज़ल (राह-ए-उल्फ़त में डट गये होते)

बह्र:- 2122  1212  22

राह-ए-उल्फ़त में डट गये होते,
खुद ब खुद ख़ार हट गये होते।

ज़ीस्त से भागते न मुँह को चुरा,
सब नतीज़े उलट गये होते।

प्यार की इक नज़र ही काफी थी,
पास हम उनके झट गये होते।

इश्क़ में खुश नसीब होते हम,
सारे पासे पलट गये होते।

सब्र का बाँध तोड़ देते गर,
अब्र अश्कों के फट गये होते,

बेहया ज़िंदगी न है 'मंज़ूर',
शर्म से हम तो कट गये होते।

साथ अपनों का गर हमें मिलता,
दर्द-ओ-ग़म कुछ तो घट गये होते।

दूर क्यों उनसे हो गये थे 'नमन',
उनके दर से लिपट गये होते।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
17-09-19

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