कपौ कुसुम का पहने गजरा, पेंपा के स्वर गुंजायें।
नाच रही हैं झूम रही हैं, असम धरा की बालायें।
महक उठी है प्रकृति मनोहर, सतरंगी आभा बिखरी।
पर्व बहाग बिहू का आया, गीत सुहाने सब गायें।।
(लावणी छंद)
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14.4.22
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