Saturday, April 9, 2022

ग़ज़ल (आज तक बस छला गया है मुझे)

बह्र:- 2122  1212  22

आज तक बस छला गया है मुझे,
दूर सच से रखा गया है मुझे।

गाम दर गाम ख्वाब झूठे दिखा,
रोज अब तक ठगा गया है मुझे।

अब इनायत सी लगती उनकी जफ़ा,
क्यों तु ग़म इतना भा गया है मुझे।

इंतज़ार उनका करते करते अब,
सब्र करना तो आ गया है मुझे।

उसने बस चार दिन पिलाई संग,
रोज का लग नशा गया है मुझे।

मेहमाँ बन कभी जो घर में बसा,
वो भिखारी बना गया है मुझे।

बेवफ़ाओं को जल्द भूल 'नमन',
सीख कोई सिखा गया है मुझे।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-10-18

No comments:

Post a Comment