दोहा छंद "मजदूर"
श्रम सीकर की वृष्टि से, सरसाते निर्माण।
इन मजदूरों का सभी, गुण का करें बखाण।।
हर उत्पादन का जनक, बेचारा मजदूर।
पर बेटी के बाप सा, खुद कितना मजबूर।।
छत देने हर शीश पर, जूझ रहा मजदूर।
बेछत पर वो खुद रहे, हो कर के मजबूर।।
चैन नहीं मजदूर को, मौसम का जो रूप।
आँधी हो तूफान हो, चाहे पड़ती धूप।।
बहा स्वेद को रात दिन, श्रमिक करे श्रम घोर।
तमस भरी उसकी निशा, लख न सके पर भोर।।
मजदूरों से ही बने, उन्नति का परिवेश।
नवनिर्माणों से खिले, नभ को छूता देश।।
नये कारखानें खुलें, प्रगति करें मजदूर।
मातृभूमि जगमग करें, भारत के ये नूर।।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
04-05-22
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