सुगम्य गीता
"अवतरणिका"
कृष्ण भाव की रास, थामें मन-रथ बैठ कर।
'बासुदेव' की आस, पूर्ण करें बसुदेव-सुत।।
व्यास देव दें दृष्टि, काव्य रचूँ कल्याणकर।
करें भाव की वृष्टि, ग्रन्थ बने ये शोक हर।।
बना शारदे वास, मन मन्दिर में पैठ कर।
विनती करता दास, 'बासुदेव' कर जोड़ कर।।
"शारदा वंदना"
कलुष हृदय में वास बना माँ,
श्वेत पद्म सा निर्मल कर दो ।
शुभ्र ज्योत्स्ना छिटका उसमें,
अपने जैसा उज्ज्वल कर दो ।।
शुभ्र रूपिणी शुभ्र भाव से,
मेरा हृदय पटल माँ भर दो ।
वीण-वादिनी स्वर लहरी से,
मेरा कण्ठ स्वरिल माँ कर दो ।।
मन उपवन में हे माँ मेरे,
कविता पुष्प प्रस्फुटित होंवे ।
मन में मेरे नव भावों के,
अंकुर सदा अंकुरित होंवे ।।
माँ जनहित की पावन सौरभ,
मेरे काव्य कुसुम में भर दो ।
करूँ काव्य रचना से जग-हित,
'नमन' शारदे ऐसा वर दो ।।
रचयिता:-
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
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