Tuesday, May 17, 2022

छंदा सागर (मङ्गलाचरण)

 "छंदा सागर" ग्रन्थ

(मङ्गलाचरण)

वीणा की माँ वादिनी, वाहन हंस विहार।
विद्या दे वागीश्वरी, वारण करो विकार।।

ब्रह्म लोक वासिनी।
दिव्य आभ भासिनी।।
वेद वीण धारिणी।
हंस पे विहारिणी।।

शुभ्र वस्त्र आवृता।
पद्म पे विराजिता।।
दीप्त माँ सरस्वती।
नित्य तू प्रभावती।।

छंद ताल हीन मैं।
भ्रांति के अधीन मैं।।
मन्द बुद्धि को हरो।
काव्य की प्रभा भरो।।

छंद-बद्ध साधना।
काव्य की उपासना।
मैं सदैव ही करूँ।
भाव से इसे भरूँ।।

मात ये विचार हो।
देश का सुधार हो।।
ज्ञान का प्रसार हो।
नष्ट अंधकार हो।।

शारदे दया करो।
ज्ञान से मुझे भरो।।
काव्य-शक्ति दे मुझे।
दिव्य भक्ति दे मुझे।।

यह रक्ता छंद की स्तुति प्रस्तुत करते हुए हिंदी के छंद शास्त्र का दिग्दर्शन कराने वाले "छंदा सागर" ग्रन्थ को विद्या बुद्धि प्रदायनी माँ सरस्वती के श्री चरणों में  आशीर्वाद की प्रार्थना के साथ अर्पित कर रहा हूँ।
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भालचन्द्र लम्बोदरा, धूम्रकेतु गजकर्णक।
एकदंत गज-मुख कपिल, गणपति विकट विनायक।।
विघ्न-नाश अरु सुमुख ये, जपे नाम जो द्वादश।
रिद्धि सिद्धि शुभ लाभ से, पाये नर मंगल यश।।

मुक्तामणि में विघ्ननाशक गणपति के द्वादश नामों को स्तुति रूप में प्रस्तुत करते हुए "छंदा सागर" ग्रन्थ के निर्विघ्न पूर्ण होने की तथा ग्रन्थ से प्रबुद्ध पाठकों का चित्त रंजन करने की मंगलकामना करता हूँ।
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सद्गुरु-महिमा न्यारी, जग का भेद खोल दे।
वाणी है इतनी प्यारी, कानों में रस घोल दे।।

गुरु से प्राप्त की शिक्षा, संशय दूर भागते।
पाये जो गुरु से दीक्षा, उसके भाग्य जागते।।

गुरु-चरण को धोके, करो रोज उपासना।
ध्यान में उनके खोकेेे, त्यागो समस्त वासना।।

गुरु-द्रोही नहीं होना, गुरु आज्ञा न टालना।
गुरु-विश्वास का खोना, जग-सन्ताप पालना।।

गुरु के गुण जो गाएँ, मधुर वंदना करें।
आशीर्वाद सदा पाएँ, भवसागर से तरें।।

अनुष्टुप छंद में यह गुरु पंच श्लोकी उन समस्त गुरुजनों को अर्पित है जिनसे मुझे आजतक किसी भी रूप में ज्ञान प्राप्त हुआ।
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बना शारदे वास, मन मन्दिर में पैठ कर। 
विनती करता दास, 'बासुदेव' कर जोड़ कर।।

कृष्ण भाव की रास, थामें मन-रथ बैठ कर।
'बासुदेव' की आस, पूर्ण करें बसुदेव-सुत।। 

व्यास देव दें दृष्टि, कार्य करूँ कल्याणकर। 
करें भाव की वृष्टि, ग्रन्थ बने ये शोक हर।।

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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

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