(राजस्थानी गीत)
जीवन री घाणी मं पिस पिस,
दोरा दिन स्यूँ म्हे उबराँ हाँ।
मजदूरी कर पेट भराँ हाँ।।
मँहगाई सुरसा सी डाकण,
गिटगी घर का गाबा कासण।
पेट पालणो दोरो भारी,
बिना मौत रे रोज मराँ हाँ।
पो फाटै जद घर स्यूँ जाणो,
ताराँ री छाँ पाछो आणो।
सूरज घर मं कदै न दीसै,
इसी मजूरी रोज कराँ हाँ।
आलीशान महल चिण दैवाँ,
झोंपड़ पट्ट्याँ मं खुद रैवाँ।
तपती लू, अंधड़, बिरखा सह,
म्हारी दुनिया मं इतराँ हाँ।
ठेकेदाराँ की ठकुराई,
बणियाँ री सह कर चतुराई।
सरकाराँ का बण बण मुहरा,
म्हे मजदूर सदा निखराँ हाँ।
मजदूरी कर पेट भराँ हाँ।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
03-05-22
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