पाठ - 09
छंदा सागर ग्रन्थ
"मिश्र छंदाऐँ"
सप्तम पाठ में हमने एक ही गुच्छक की विभिन्न आवृत्तियों पर आधारित वृत्त छंदाओं का विस्तृत अध्ययन किया। अष्टम पाठ में हमारा परिचय गुरु छंदाओं से हुआ जिनमें केवल गुरु वर्ण रहते हैं। अब इस नवम पाठ से हम मिश्र छंदाओं के विस्तृत संसार में प्रविष्ट हो रहे हैं। मिश्र छंदाओं की संरचना विभिन्न प्रकार से होती है। छंदा में एक ही गण पर आधारित विभिन्न गुच्छक रह सकते हैं, उन गुच्छकों में वर्णों का स्वतंत्र संयोजन हो सकता है या छंदा में एक से अधिक गण का प्रयोग हो सकता है।
ये मिश्र छंदाएँ उसमें प्रयुक्त प्रथम गण के आधार पर वर्गीकृत की गयी हैं। कुल आठ गण हैं। इनमें नगण (111) आधारित गुच्छक का प्रयोग केवल वर्णिक स्वरूप की छंदाओं में ही होता है जिनका अवलोकन हम वर्णिक छंदाओं के पाठ में करेंगे। मिश्र छंदाओं की श्रंखला में हम बाकी बचे सात गण के आधार पर बनी छंदाओं का अध्ययन करेंगे। प्रत्येक पाठ में छंदाओं का वर्गीकरण छंदा के स्वरूप के आधार पर किया गया है।
छंदा की मापनी में जहाँ भी 11 लिखा जाता है या छंदा के नाम में 'लु' संकेतक का प्रयोग होता है तो वह सदैव ऊलल वर्ण ही होता है। वाचिक स्वरूप में इसे शास्वत दीर्घ के रूप में नहीं ले सकते क्योंकि शास्वत दीर्घ गुरु वर्ण का ही दूसरा रूप है। जबकि मात्रिक और वर्णिक स्वरूप में इन्हें शास्वत दीर्घ के रूप में एक शब्द में भी रखा जा सकता है। केवल गुरु वर्ण पर आधरित गुरु छंदाओं का काव्य में अलग ही महत्व है। इन छंदाओं में म और ग इन दो ही वर्ण के संकेतक का प्रयोग होता है। (केवल लघु वृद्धि छंदाओं के अंत में ल वर्ण का प्रयोग मान्य है।) गुरु छंदाओं के वाचिक स्वरूप में गुरु वर्ण को ऊलल वर्ण में तोड़ा जा सकता है।
मिश्र छंदाओं के वाचिक और मात्रिक स्वरूप में भी जहाँ केवल गुरु वर्ण युक्त वर्ण या गुच्छक हों तो वाचिक स्वरूप में उसके ऐसे किसी भी गुरु को ऊलल (11) के रूप में लिया जा सकता है जिसके दोनों तरफ गुरु वर्ण रहे। ऐसे वर्ण गुरु (2) और ईगागा (22) हैं। गुच्छक में मगण आधारित 9 के 9 गुच्छक में यह छूट है। जैसे तींमा छंदा में मकार युक्त गुच्छक है। छंदा का स्वरूप देखने से यह पता चलता है कि केवल मगण का मध्य गुरु ऐसा है जिसके दोनों तरफ गुरु वर्ण हैं। रचना कार यदि चाहे तो उसे ऊलल के रूप में तोड़ सकता है। इसी प्रकार तूमा छंदा के मगण के आदि या मध्य के किसी भी गुरु को ऊलल में तोड़ सकते हैं।
गुरु छंदाओं में तो गुरु वर्ण को ऊलल वर्ण में तोड़ने की छूट रहती है परंतु ऐसे अनेक बहुप्रचलित छंद हैं जिन में केवल गुरु वर्ण (2) और उनके मध्य में ऊलल (11) वर्ण का समावेश विधान के अंतर्गत आता है। हम इन मिश्र छंदाओं के पाठों में ऐसी छंदाओं को अलग से वर्गीकृत करेंगे। इन्हें हम गुरु-लूकी छंदाएँ कहेंगे। गुरु लूकी छंदाएँ आधार गण मगण, तगण, भगण और सगण रहने से ही बन सकती हैं। इन चारों गणों की छंदाओं में सर्वप्रथम गुरु लूकी छंदाएँ ही दी गयी हैं।
इसके पश्चात गणावृत्त छंदाएँ दी गयी हैं। इन छंदाओं में केवल आधार गण पर आधारित गुच्छक ही रहते हैं। किसी भी गण के 9 गुच्छक होते हैं। इन गणावृत्त छंदाओं में एक से चार तक गुच्छक रहते हैं। केवल एक गुच्छक की छंदाओं में एक गुच्छक और अंत में स्वतंत्र वर्ण संयोजन रहता है। द्विगुच्छकी छंदाओं में एक ही गुच्छक की दो आवृत्ति हो सकती है या दो विभिन्न गुच्छक हो सकते हैं। इनमें अंत में, मध्य में या अंत और मध्य दोनों स्थान पर वर्ण संयोजन हो सकता है। त्रिगुच्छकी छंदाओं में एक ही गुच्छक की तीन आवृत्ति हो सकती है। एक गुच्छक की दो आवृत्ति और अन्य गुच्छक रह सकता है या तीनों अलग गुच्छक हो सकते हैं। चतुष गुच्छकी छंदाओं में आवृत्तियों की प्रमुखता रहती है।
वर्ण संयोजन:- मिश्र छंदाओं में वर्ण संयोजन का अत्यंत महत्व है। कुल वर्ण 6 हैं। गण में इन वर्णों के संयोजन से गणक बनते हैं। वृत्त छंदाओं में हम गण और विविध गणक की आवृत्ति की छंदाओं का अध्ययन कर चुके हैं। एक ही गण आधारित गुच्छक की आवृत्ति से भी छंदाओं में विशेष लय बनती है क्योंकि आधार गण की समानता रहती है। 6 वर्ण तथा जगण और तगण को युज्य के रूप में जोड़ने से हमें प्रत्येक गण से 8 गणक प्राप्त होते हैं। यहाँ मिश्र छंदाओं में हम ऐसी छंदाएँ सम्मिलित नहीं करेंगे जिनमें दो से अधिक लघु एक साथ हो या अंत में ऊलल वर्ण (11) पड़े।
अंत में बहुगणी छंदाएँ दी गयी हैं। जिन छंदाओं में एक से अधिक गणों के गुच्छकों का समावेश है, वे बहुगणी छंदाओं की श्रेणी में आती है।
छंदाओं का नामकरण:- छंदा में वर्ण की संख्या के अनुसार नामकरण की निम्न प्रकार से परंपराएँ निभाई जाती है -
4 वर्ण - गणक संकेत और 'क', जैसे यीका, रीकण।
5 वर्ण - गणक संकेत और 'क', जैसे तैका, सूकव।
6 वर्ण - 5+1 गणक और वर्ण। जैसे 22121 2 = तींगा, तींगण। यदि संभव हो तो गणक संकेत और 'क', जैसे सूंका, रैंका।
7 वर्ण - 5+2 गणक और वर्ण। जैसे 22121 22 = तींगी, तींगिव
8 वर्ण - 6+2 गणक और वर्ण यदि संभव हो जैसे 221121 22 = तूंगी। अन्यथा 5+3 गणक और गण जैसे 22121 212 = तींरा
9 वर्ण - 6+3 गणक और गण यदि संभव हो जैसे 122221 212 = यैंरा, यैंरण, यैंरव। अन्यथा 5+4 दो गणक जैसे 22121 2122 = तींरी
10 वर्ण - 6+4 या 5+5 दो गणक। जैसे 122121 2112 = यूंभी या 22121 12222 = तींये।
उपरोक्त परंपराएँ वर्ण संख्या के आधार पर निभाई जाने वाली सामान्य परंपराएँ हैं। परंतु छंदों में गणों की आवृत्ति का बहुत महत्व है। छंदाओं के नामकरण में किसी भी प्रकार की आवृत्ति को सदैव प्राथमिकता दी जाती है। इन प्राथमिकताओं का क्रम निम्नानुसार है।
(1) सर्व प्रथम आधार गुच्छक की आवृत्ति की प्राथमिकता रहती है। जैसे 212*2 2 = रादग का नाम 21221 22 = रींगी नहीं रखा जा सकता। 2122 21211 2 = रीरोगा का 212221 2112 = रैंभी नाम नहीं होगा। इस छंदा में दो रगणाश्रित गुच्छक आवृत्त हो रहे हैं जिनकी छंदा के नामकरण में प्राथमिकता है।
(2) आधार गण यदि छंदा के अंत के गुच्छक में पुनरावृत्त हो रहा है तो उसकी प्राथमिकता है। जैसे 12221 212 122 = यींरय को 12221 21212 2 = यींरुग नाम देना उचित नहीं।
(3) आधार गण के पश्चात यदि अन्य गण की किसी भी प्रकार की आवृत्ति बन रही है तो ऐसी आवृत्ति की प्राथमिकता रहती है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
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