Thursday, April 13, 2023

मनहरण घनाक्षरी "शादी के लड्डू"

काम सा अनंग हो या, शिव सा मलंग बाबा,
व्याह के तो लडूवन, सब को ही भात है।

जैसे बड़ा पूत होवे, मात कल्पना में खोवे,
सोच उसके व्याह की, मन पुलकात है।

घोड़ी चढ़ने का चाव, दूल्हा बनने का भाव,
किसका हृदय भला, नहीं तरसात है।

शादी के जो लड्डू खाये, फिर पाछे पछताये,
नहीं जो अभागा खाये, वो भी पछतात है।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
16-09-17

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