Wednesday, April 26, 2023

ग़ज़ल (मानवी जीवन महासंग्राम है)

बह्र:- 2122  2122  212

मानवी जीवन महासंग्राम है,
प्रेम से रहना यहाँ विश्राम है।

पेट की ख़ातिर है इतनी भागदौड़,
ज़िंदगी में अब कहाँ आराम है।

जोर मँहगाई का ही चारों तरफ,
हर जगह नव छू रही आयाम है।

स्वार्थ नेताओं में बढ़ता जा रहा,
देश जिसका भोगता परिणाम है।

हाल क्या बदइंतजामी का कहें,
रोज हड़तालें औ' चक्का जाम है।

क़त्ल, हिंसा और लुटती अस्मिता,
हर कहीं अब तो मचा कुहराम है।

मन की दो बातें 'नमन' किससे करें,
पूछिये जिससे भी उस को काम है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-12-17

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