छवि छंद / मधुभार छंद
प्रिय का न संग।
बेढंग अंग।।
शशि युक्त रात।
जले पर गात।।
रहता उदास।
मिटी सब आस।।
हूँ अति अधीर।
लिये दृग नीर।।
है व्यथित देह।
दे डंक गेह।।
झेल अलगाव।
लगे भव दाव।।
मिला मनमीत।
बजे मधु गीत।।
उद्दीप्त भाव।
हृदय अति चाव।।
है मिलन चाह।
गयी मिट आह।।
प्राप्त नव राह।
शांत सब दाह।।
छायी उमंग।
मन में तरंग।।
फैला उजास।
है मीत पास।।
***********
छवि छंद / मधुभार छंद विधान -
छवि छंद जो कि मधुभार छंद के नाम से भी जाना जाता है, 8 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत जगण (121) से होना आवश्यक है। यह वासव जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 8 मात्राओं का विन्यास चौकल + जगण (121) है। इसे त्रिकल + 1121 या पंचकल + ताल (21) के रूप में भी रच सकते हैं।
इकी निम्न संभावनाएँ हो सकती हैं।
22 121
21 या 12 + 1121
1211 21
2111 21
221 21
(2 को 11 में तोड़ सकते हैं, पर अंत सदैव जगण (1S1) से होना चाहिए।)
******************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
23-05-22
No comments:
Post a Comment