बढ़ती जाये ज्यों आबादी, घटते कारोबार हैं,
तुष्टिकरण के आज सामने, सरकारें लाचार हैं,
पास नहीं इक रोजगार है, बच्चों की पर फौज सी,
आज़ादी के सात दशक यूँ, कर दीन्हे बेकार हैं।
खुद की देन आपकी बच्चे, मिलते ये न प्रसाद में,
घर में पहले रोजगार हो, बच्चे फिर हों बाद में,
बात न ये तबके तबके की, सारे जिम्मेदार हैं,
तय कर दे कानून देश का, बच्चे किस तादाद में।
(प्रदीप छंद आधारित)
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-11-2016
वाह
ReplyDeleteआपका आभार
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