पर्यावरण, मैला हुआ।
वातावरण, बिगड़ा हुआ।।
कोई नहीं, संयोग ये।
मानव रचित, इक रोग ये।।
धुंआ बड़ा, विकराल है।
साक्षात ये, दुष्काल है।।
फैला हुआ, चहुँ ओर ये।
जग पर विपद, घनघोर ये।।
पादप कटें, देखो जहाँ।
निर्मल हवा, मिलती कहाँ।।
मृतप्राय है, वन-संपदा।
सिर पर खड़ी, बन आपदा।।
दूषित हुईं, सरिता सभी।
भारी कमी, जल की तभी।।
मिलके तुरत, उपचार हो।
देरी न अब, स्वीकार हो।।
हम नींद से, सारे जगें।
लतिका, विटप, पौधे लगें।।
होकर हरित, वसुधा खिले।
फल, पुष्प अरु, छाया मिले।।
कलरव मधुर, पक्षी करें।
संगीत से, भू को भरें।।
दूषित हवा, सब लुप्त हों।
रोगाणु भी, सब सुप्त हों।।
दूषण रहित, संयंत्र हों।
वसुधा-हिती, जनतंत्र हों।।
वातावरण, स्वच्छंद हो।
मन में न कुछ, दुख द्वंद हो।।
क्यों नागरिक, पीड़ा सहें।
बन जागरुक, सारे रहें।।
बेला न ये, आये कभी।
विपदा 'नमन', टालें सभी।।
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मधुमालती छंद विधान -
मधुमालती छंद 14 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है। इसमें 7 - 7 मात्राओं पर यति तथा पदांत रगण (S1S) से होना अनिवार्य है । यह मानव जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 पद होते हैं और छंद के दो दो या चारों पद सम तुकांत होने चाहिए। इन 14 मात्राओं की मात्रा बाँट:- 2212, 2S1S है। S का अर्थ गुरु वर्ण है। 2 को 11 करने की छूट है पर S को 11 नहीं कर सकते।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
05-06-22
पर्यावरण पर बहुत प्यारी कविता हुई है।
ReplyDeleteआपका अतिशय धन्यवाद।
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteआपका आत्मिक आभार।
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