सावन पावन भावन छाया।
सोमवार त्योहार सुहाया।।
शंकर किंकर-हृदय समाया।
वन्दन चन्दन देय सजाया।।
षटमुख गजमुख तात महानी।
तू शमशानी औघड़दानी।।
भंग भुजंग-सार का पानी।
आशुतोष तू दोष नसानी।।
चंदा गंगा सर पर साजे।
डमरू घुँघरू कर में बाजे।।
शैल बैल पर तू नित राजे।
शोभा आभा लख सब लाजे।।
गरिमा महिमा अति है न्यारी।
पापन-नाशी काशी प्यारी।।
वरदा गिरिजा प्रिया दुलारी।
पाप त्रि-ताप हरो त्रिपुरारी।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
29-07-19
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