पर्वतों का चीर अंचल।
मोड़ नदियों का धरातल।।
बर्फ के अंबार काटें।
जो असमतल भूमि पाटें।।
काट जंगल पथ बनातें।
पाँव फिर सैनिक बढातें।।
दुश्मनों के काल वे बन।
मोरचा ले कर डटें तन।।
ये अनेकों प्रांत के हैं।
वेश, मजहब, जात के हैं।।
देश के ये गीत गाते।
याद घर की सब भुलाते।।
जी हिलाती घाटियों में।
मार्च करते वर्दियों में।।
मस्तियों में नाचते हैं।
साथ मिल गम बाँटते हैं।।
गोलियों की बारिशों में।
तोप, बम्बों के सुरों में।।
हिन्द की सेना सजाते।
बैंड दुश्मन का बजाते।।
देश की पावन धरोहर।
है इन्हीं के स्कंध ऊपर।।
कृत्य इनके हैं अलौकिक।
ये 'नमन' के पात्र सैनिक।।
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मनोरम छंद विधान -
मनोरम छंद 14 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है। यह मानव जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 पद होते हैं और छंद के दो दो या चारों पद सम तुकांत होने चाहिए। इन 14 मात्राओं की मात्रा बाँट:- S122 21SS या S122 21S11 है। S का अर्थ गुरु वर्ण है। 2 को 11 करने की छूट है पर S को 11 नहीं कर सकते।
यह कुछ सीमा तक 2122*2 की मापनी पर आधारित छंद है। परंतु इस छंद के चरण के प्रारंभ में गुरु वर्ण आवश्यक है। चरणांत यगण (1SS) या भगण (S11) से आवश्यक है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
04-06-22
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