धूप बटोरे
रात के छिटकाये
दूब पे मोती।
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सुबह हुई
ज्यों चाँद से बिछुड़ी
रजनी रोई।
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ग्रीष्म फटका
पसीने का मटका
फिर छिटका।
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गर्मी का जोर
आतंक जैसा घोर
कहाँ है ठोर?
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सुबह लायी
झोली भर के मोती
धूप ले उड़ी।
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कुसुम लदी
लता लज्जा में पगी
ज्यों नव व्याही।
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सावन आया
हरित धरा कर
रंग जमाया।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
28-12-19
वाह
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार।
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteआपका हृदयतल से आभार।
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