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Thursday, October 13, 2022

करवाचौथ मुक्तक

 हरिगीतिका छंद वाचिक



त्योहार करवाचौथ का नारी का है प्यारा बड़ा,
इक चाँद दूजे चाँद को है देखने छत पे खड़ा,
लम्बी उमर इक चाँद माँगे वास्ते उस चाँद के,
जो चाँद उसकी जिंदगी के आसमाँ में है जड़ा।

हरिगीतिका छंद विधान - 

हरिगीतिका छंद चार पदों का एक सम-पद मात्रिक छंद है। प्रति पद 28 मात्राएँ होती हैं तथा यति 16 और 12 मात्राओं पर होती है। यति 14 और 14 मात्रा पर भी रखी जा सकती है।

इसकी भी लय गीतिका छंद वाली ही है तथा गीतिका छंद के प्राम्भ में गुरु वर्ण बढ़ा देने से हरिगीतिका छंद हो जाती है। गीतिका छंद के प्रारंभ में एक गुरु बढ़ा देने से इसका वर्ण विन्यास निम्न प्रकार से तय होता है।

2212  2212  2212  221S

चूँकि हरिगीतिका छंद एक मात्रिक छंद है अतः गुरु को आवश्यकतानुसार 2 लघु किया जा सकता है परंतु 5 वीं, 12 वीं, 19 वीं, 26 वीं मात्रा सदैव लघु होगी। अंत सदैव गुरु वर्ण से होता है। इसे 2 लघु नहीं किया जा सकता। चारों पद समतुकांत या 2-2 पद समतुकांत होते हैं।

इस छंद की धुन  "श्री रामचन्द्र कृपालु भज मन" वाली है।

एक उदाहरण:-
मधुमास सावन की छटा का, आज भू पर जोर है।
मनमोद हरियाली धरा पर, छा गयी चहुँ ओर है।
जब से लगा सावन सुहाना, प्राणियों में चाव है।
चातक पपीहा मोर सब में, हर्ष का ही भाव है।।
(स्वरचित)

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Thursday, April 11, 2019

हरिगीतिका छंद "माँ और उसका लाल"

ये दृश्य भीषण बाढ़ का है गाँव पूरा घिर गया।
भगदड़ मची चारों तरफ ही नीर प्लावित सब भया।।
माँ एक इस में घिर गयी है संग नन्हे लाल का।
वह कूद इस में है पड़ी रख आसरा जग पाल का।।

आकंठ डूबी बाढ़ में माँ माथ पर ले छाबड़ी।
है तेज धारा मात को पर क्या भला इससे पड़ी।।
वह पार विपदा को करे अति शीघ्र बस मन भाव ये।
सर्वस्व उसका लाल सर पर है सुरक्षित चाव ये।।

सन्तान से बढ़कर नहीं कुछ भी धरोहर मात की।
निज लाल के हित के लिये चिंता करे हर बात की।।
माँ जूझती, संकट अकेली लाख भी आये सहे।
मर मर जियें हँस के सदा पर लाल उसका खुश रहे।।

बाधा नहीं कोई मुसीबत पार करना ध्येय हो।
मन में उमंगें हो अगर हर कार्य करना श्रेय हो।।
हो चाह मन में राह मिलती पाँव नर आगे बढ़ा।
फिर कूद पड़ इस भव भँवर में भंग बढ़ने की चढ़ा।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-09-18

Thursday, March 14, 2019

हरिगीतिका छंद "भैया दूज"

तिथि दूज शुक्ला मास कार्तिक, मग्न बहनें चाव से।
भाई बहन का पर्व प्यारा, वे मनायें भाव से।
फूली समातीं नहिं बहन सब, पाँव भू पर नहिं पड़ें।
लटकन लगायें घर सजायें, द्वार पर तोरण जड़ें।

कर याद वीरा को बहन सब, नाच गायें झूम के।
स्वादिष्ट भोजन फिर पका के, बाट जोहें घूम के।
करतीं तिलक लेतीं बलैयाँ, अंक में भर लें कभी।
बहनें खिलातीं भ्रात खाते, भेंट फिर देते सभी।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
31-10-2016

गीतिका/हरिगीतिका छंद विधान

गीतिका छंद :- ये चार पदों का एक सम-मात्रिक छंद है. प्रति पंक्ति 26 मात्राएँ होती हैं तथा प्रत्येक पद 14-12 अथवा 12-14 मात्राओं की यति के अनुसार होता है.
इसका वर्ण विन्यास निम्न है।
2122  2122  2122  212

चूँकि गीतिका छंद एक मात्रिक छंद है अतः गुरु को आवश्यकतानुसार 2 लघु किया जा सकता है परंतु 3 री, 10 वीं, 17 वीं और 24 वीं मात्रा सदैव लघु होगी। अंत सदैव गुरु वर्ण से होता है। इसे 2 लघु नहीं किया जा सकता।
चारों पद समतुकांत या 2-2 पद समतुकांत।

हरिगीतिका छंद :- इसकी भी लय गीतिका छंद वाली ही है तथा गीतिका छंद के प्राम्भ में गुरु वर्ण बढ़ा देने से हरिगीतिका हो जाती है। यह चार पदों का एक सम-मात्रिक छंद है. प्रति पंक्ति 28 मात्राएँ होती हैं तथा यति 16 और 12 मात्राओं पर होती है। यति 14 और 14 मात्रा पर भी रखी जा सकती है। गुप्त जी का उदाहरण देखें:-

मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरती।
भगवान ! भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती।

गीतिका छंद में एक गुरु बढ़ा देने से इसका वर्ण विन्यास निम्न प्रकार होता है।
2212  2212  2212  2212

चूँकि हरिगीतिका छंद एक मात्रिक छंद है अतः गुरु को आवश्यकतानुसार 2 लघु किया जा सकता है परंतु 5 वीं, 12 वीं, 19 वीं, 26 वीं मात्रा सदैव लघु होगी। अंत सदैव गुरु वर्ण से होता है। इसे 2 लघु नहीं किया जा सकता।
चारों पद समतुकांत या 2-2 पद समतुकांत।

इस छंद की धुन  "श्री रामचन्द्र कृपालु भज मन" वाली है।

एक उदाहरण:-
मधुमास सावन की छटा का, आज भू पर जोर है।
मनमोद हरियाली धरा पर, छा गयी चहुँ ओर है।
जब से लगा सावन सुहाना, प्राणियों में चाव है।
चातक पपीहा मोर सब में, हर्ष का ही भाव है।।
(बासुदेव अग्रवाल रचित)